Saturday 26 April 2014

कभी कभी भगवान को भी, भक्तों से काम पडे |
जाना था गंगा पार, प्रभु केवट की नाव चढें.....
अवध छोड प्रभु वन को धायें, सियाराम लखन गंगा तट आये,
केवट मन ही मन हरषायें, घर बैंठे प्रभु दर्शन पाये |
हाथ जोड कर प्रभु के आगे, केवट मगन खडें ||जाना था गंगा पार..
प्रभु बोले तुम नाव चलाओ, पार हमें केवट पहुँचाओं,
केवट कहता सुनो हमारी, चरण धूली की माया भारी |
मैं गरीब हूँ नैया मेरी, ना नारी होय पडे..|| जाना था गंगा पार..
केवट दौड के जल भर लाये, चरण धोये चरणामृत पाया,
वेद ग्रंथ जिनके यश गाये, केवट उनको नाव चढायें |
बरसे फ़ूल गगन से ऐसे, भक्त के भाग बढ़े ||जाना था गंगा पार..
चली नाव गंगा की धारा, सियाराम लखन को पार उतारा,
प्रभु देने लगे नाव उतराई, केवट कहे नही रघुराई |
पार किया मैने तुमको, अब तू मोहें पार करे || जाना था गंगा पार..
कभी कभी भगवान को भी, भक्तों से काम पडे |
जाना था गंगा पार, प्रभू केवट की नाव चढें ||

1 comment: