Sunday 27 April 2014

मैं भी उसी की शरण हूँ।


स्वायुधः सोतृभिः पृयमानोऽभयर्ष गुह्यं चारु नाम।
अभि वाजं सप्तिरिव श्रवस्याभि वायुमभि गा देव सोम।। 
अनुवाद:- हे परमेश्वर! आप (स्वायुधः) अपने तत्व ज्ञान रूपी शस्त्र युक्त हैं। उस अपने तत्व ज्ञान रूपी शस्त्र द्वारा (पूयमानः) मवाद रूपी अज्ञान को नष्ट करें तथा (सोतृभिः) अपने उपासक को अपने (गृह्यम्) गुप्त (चारु) सुखदाई श्रेष्ठ (नाम) नाम व मन्त्र का (अभ्यर्ष) ज्ञान कराऐं (सोमदेव) हे अमर परमेश्वर आप के तत्व ज्ञान की (गा) लोकोक्ति गान की (श्रवस्याभि) कानों को अतिप्रिय लगने वाली विश्रुति (वायुमभि) प्राणा अर्थात् जीवनदायीनि (वाजम् अभि) शुद्ध घी जैसी श्रेष्ठ (सप्तिरिव) घोड़े जैसी तिव्रगामी तथा बलशाली है अर्थात् आप के द्वारा दिया गया तत्व ज्ञान जो कविताओं, लोकोक्तियों में है वह मोक्ष दायक है उस अपने यथार्थ ज्ञान व वास्तविक अपने नाम का ज्ञान कराऐं।

भावार्थ:- इस मन्त्र 16 में प्रार्थना की गई है कि अमर प्रभु का वास्तविक नाम क्या है तथा तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से अज्ञान को काटे अर्थात् अपना वास्तविक नाम व तत्वज्ञान कराऐ। यही प्रमाण गीता अध्याय-15 के श्लोक 1 से 4 में कहा है कि संसार रूपी वृक्ष के विषय में जो सर्वांग सहित जानता है वह तत्वदर्शी सन्त है। उस तत्वज्ञान रूपी शस्त्रा से अज्ञान को काटकर उस परमेश्वर के परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते। गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि मैं भी उसी की शरण हूँ। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 में किए प्रश्न का उत्तर निम्न श्लोक में दिया है कहा है कि उस अमर पुरूष का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है।
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ऋग्वेद मण्डल-9 सूक्त 96 मंत्र-17

शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम् अत्येति रेभन्।।

अनुवाद - सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वन्हि:) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्राम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर् वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।
भावार्थ - ऋग्वेद मण्डल नं.-9 सुक्त नं. 96 मन्त्र-16 में कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम को जाने इस मन्त्र 17में उस परमात्मा का नाम व परिपूर्ण परिचय दिया है। वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कबीर बाणी के द्वारा अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयाईयों को ऋषि, सन्त व कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। इस तत्वज्ञान के अभाव से उस समय प्रकट परमात्मा को न पहचान कर केवल ऋषि व संत या कवि मान लेते हैं वह परमात्मा स्वयं भी कहता है कि मैं पूर्ण ब्रह्म हूँ सर्व सृष्टी की रचना भी मैं ही करता हूँ। मैं ऊपर सतलोक (सच्चखण्ड) में रहता हूँ। परन्तु लोक वेद के आधार से परमात्मा को निराकार माने हुए प्रजाजन नहीं पहचानते , 

जैसे गरीबदास जी महाराज ने काशी में प्रकट परमात्मा को पहचान कर उनकी महिमा कही तथा उस परमेश्वर द्वारा अपनी महिमा बताई थी उसका यथावत् वर्णन अपनी वाणी में किया ::-

गरीब, जाति हमारी जगत गुरू, परमेश्वर है पंथ।
दासगरीब लिख पडे़ नाम निरंजन कंत।।

गरीब, हम ही अलख अल्लाह है, कुतूब गोस और पीर।
गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।

गरीब, ऐ स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टी हमरे तीर।
दास गरीब अधर बसू। अविगत सत कबीर।।

इतना स्पष्ट करने पर भी उसे कवि या सन्त, भक्त या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि, सन्त व कवि रूप में होता है। परन्तु तत्व ज्ञानहीन  संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूप में प्रकट परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन अज्ञानि  संतों व गुरूओं ने परमात्मा को निराकार बताया होता है।

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