Tuesday 29 April 2014

ऐसे साधु भेषधारियों का तो मुख देखने का भी धर्म नहीं

एक मांस खाने वाला साधु मार्ग में जा रहा था | आगे कबूतर और कबूतरी दाना चुगते थे | साधु ने मन में सोचा कि इन दोनों में से एक की शिकार कर लें | कबूतरी ने दूर से उसकी तरफ देखा और कबूतर को बोली ~ यह साधु हिंसक दिखाई पड़ता है, अपन यहाँ से उड़ चलें | कबूतर बोला ~ ‘‘नहीं, अगर हम साधु भेष को नहीं मानेंगे, तो हम नास्तिक होंगे |’’ इतने में वह नजदीक आ गया | उसने डंडा घुमाकर फेंका, जो कबूतर के पांवों में लगा और वह मर गया | साधु कबूतर को जेब में रख कर चल पड़ा | कबूतरी पति - वियोग में दुखी होकर उपरोक्त वृत्तान्त राजा को सुनाया | राजा पक्षियों की बोली समझता था | राजा ने तत्काल राजपुरुषों को आदेश दिया कि उस साधु को पकड़ कर लाओ | राजपुरुष उसे गिरफ्तार करके राजा के सामने ले आये | उसकी तलाशी ली, तो कबूतर उसके पास मिल गया | राजा न्यायकारी था | विचार किया कि अगर इसको फाँसी की सजा देंगे, तो मनुष्य - हत्या करने वाले को क्या सजा देंगे ? यह सोचकर कबूतरी से पूछा कि इसको क्या सजा दें ? कबूतरी ने विचार किया कि पति तो मर गया, इसको मरवा कर मुझे पाप ही मिलेगा | तब बोली ~ राजन् ! इसका भेष उतरवा लिया जावे ताकि आगे कोई धोखे में इसके जाल में नहीं फँसेंऔर इसको आदेश दें कि यदि उस भेष को वापिस पहनेगा तो तुझे प्राण - दंड की सजा होगी | राजा ने वैसा ही किया |  ऐसे साधु भेषधारियों का तो मुख देखने का भी धर्म नहीं 

1 comment: