Tuesday 29 April 2014

जन्म मृत्यु तथा कर्मदण्ड भोगते रहते हैं। पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं होता।


ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया, और धर्मराय कहिये।
इन पाँचों मिल परपंच बनाया, वाणी हमरी लहिये।।

इन पाँचों मिल जीव अटकाये, जुगन-जुगन हम आन छुटाये।
बन्दी छोड़ हमारा नामं, अजर अमर है अस्थिर ठामं।।

पीर पैगम्बर कुतुब औलिया, सुर नर मुनिजन ज्ञानी।
येता को तो राह न पाया, जम के बंधे प्राणी।।

धर्मराय की धूमा-धामी, जम पर जंग चलाऊँ।
जौरा को तो जान न दूगां, बांध अदल घर ल्याऊँ।।

काल अकाल दोहूँ को मोसूं, महाकाल सिर मूंडू।
मैं तो तख्त हजूरी हुकमी, चोर खोज कूं ढूंढू।।

मूला माया मग में बैठी, हंसा चुन-चुन खाई।
ज्योति स्वरूपी भया निरंजन, मैं ही कर्ता भाई।।

एक न कर्ता दो न कर्ता दश ठहराए भाई।
दशवां भी धूंध्र में मिलसी सत कबीर दुहाई।।

संहस अठासी द्वीप मुनीश्वर, बंधे मुला डोरी।
ऐत्यां में जम का तलबाना, चलिए पुरुष कीशोरी।।

मूला का तो माथा दागूं, सतकी मोहर करूंगा।
पुरुष दीप कूं हंस चलाऊँ, दरा न रोकन दूंगा।।

हम तो बन्दी छोड़ कहावां, धर्मराय है चकवै।
सतलोक की सकल सुनावं , वाणी हमरी अखवै।।

नौ लख पटट्न ऊपर खेलूं, साहदरे कूं रोकूं।
द्वादस कोटि कटक सब काटूं, हंस पठाऊँ मोखूं।।

चौदह भुवन गमन है मेरा, जल थल में सरबंगी।
खालिक खलक खलक में खालिक, अविगत अचल अभंगी।।

अगर अलील चक्र है मेरा, जित से हम चल आए।
पाँचों पर प्रवाना मेरा, बंधि छुटावन धाये।।

जहां ओंकार निरंजन नाहीं, ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं जाहीं।
जहां कर्ता नहीं अन्य भगवाना, काया माया पिण्ड न प्राणा।।

पाँच तत्व तीनों गुण नाहीं, जौरा काल उस द्वीप नहीं जाँहीं।
अमर करूं सतलोक पठाँऊ, तातैं बन्दी छोड़ कहाऊँ।।

बन्दी छोड़ कबीर गुसांइ। झिलमलै नूर द्रव झांइ।।

भावार्थ:- सन्त गरीब दास जी ने परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी से तत्वज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् बताया कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव तथा माया अर्थात् दुर्गा देवी व ज्योति निरंजन अर्थात् काल, इन पांचों ने मिल कर सर्व प्राणियों को जाल में फंसाए रखने का षड़यंत्रा रचा है। हम जो वचन कह रहे हैं इनको ध्यान पूर्वक सुनों तथा गहराई से विचार करो। परमेश्वर बन्दी छोड़ जी हैं। उनका सत्यलोक स्थान शाशवत अर्थात् अविनाशी है। सुर नर अर्थात् देव लोग व मुनि –ज्ञानी अर्थात् परमात्मा प्राप्ति में लगे मनशील ज्ञानीजन इन सर्व को पूर्ण मोक्ष मार्ग प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए सर्व ऋषिजन व देवता काल जाल में ही फंसे हैं। गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि यह ज्ञानी आत्माएं जो परमात्मा प्राप्ति के लिए प्रयत्न शील है ये हैं तो नेक परन्तु तत्वदर्शी सन्त के अभाव से मेरी अनुत्तम (अश्रेष्ठ) साधना में लीन हैं। 

यही प्रमाण कबीर जी ने दिया है:- 

कबीर, सुर नर मुनि जन तेतीस करोड़ी, बन्धे सबै निरंजन डोरी।

भावार्थ है कि सर्व मुनि, ऋषि तथा तेतीस करोड़ देवता काल साधना करके काल की डोरी से ही बन्धे हैं अर्थात् ब्रह्म काल के नियमानुसार जन्म मृत्यु तथा कर्मदण्ड भोगते रहते हैं। पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं होता। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने कहा है कि जो निरधारित समय अनुसार छोटी आयु में मृत्यु को प्राप्त होते या निरधारित समय से पहले अर्थात् अकाल मृत्यु को प्राप्त होते, उन दोनों प्रकार की मृत्यु को टाल कर पूरा जीवन अपनी कृपा से प्रदान कर देता है तथा इस काल मृत्यु तथा अकाल मृत्यु का मुख्य कारण महाकाल अर्थात् ज्योति निरंजन जो इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में वास्तविक काल रूप में विराजमान है उस चोर को ढूढ़ लिया है उस का प्रभाव भी अपने साधक से समाप्त कर दूगाँ। काल ने अपनी पत्नी दुर्गा द्वारा जाल फैलवाया है। जिस कारण से प्राणी पूर्ण परमात्मा तक नहीं जा पाते इस दुर्गा को भी दण्ड देता हूँ। तब अपना नाम व सारनाम दे कर पार करता हूँ।

कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की महिमा जताते हुए आदरणीय गरीबदास साहेब जी कह रहे हैं कि हमारे प्रभु कविर् (कविर्देव) बन्दी छोड़ हैं। (बन्दी छोड़ का भावार्थ है काल की कारागार से छुटवाने वाला,) काल ब्रह्म के इक्कीश ब्रह्मण्डों में सर्व प्राणी पापों के कारण काल के बंदी हैं। पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब पाप का विनाश कर देता है। पापों का विनाश न ब्रह्म, न परब्रह्म, न ही ब्रह्मा, न विष्णु, न शिव जी कर सकते। केवल जैसा कर्म है, उसका वैसा ही फल दे देते हैं। इसीलिए यजुर्वेद अध्याय 5 के मन्त्र 32 में लिखा है ‘कविरंघारिरसि‘ कविर्देव पापों का शत्रु है, ‘बम्भारिरसि‘ बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है। इन पाँचों (ब्रह्मा-विष्णु-शिव-माया और धर्मराय) से उपर सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) है। जो सतलोक का मालिक है। शेष सर्व परब्रह्म-ब्रह्म तथा ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी व आदि माया नाशवान परमात्मा हैं। महाप्रलय में ये सब तथा इनके लोक समाप्त हो जाएंगे। आम जीव से कई हजार गुणा ज्यादा लम्बी इनकी आयु है। परन्तु जो समय निर्धारित है वह एक दिन पूरा अवश्य होगा।

आदरणीय गरीबदास जी महाराज कहते हैं:

शिव ब्रह्मा का राज, इन्द्र गिनती कहां। 
चार मुक्ति वैकुंण्ठ समझ, येता लह्या।।

संख जुगन की जुनी, उम्र बड़ धारिया। 
जा जननी कुर्बान, सु कागज पारिया।।

येती उम्र बुलंद मरैगा अंत रे। 
सतगुरु लगे न कान, न भैंटे संत रे।।

-- चाहे संख युग की लम्बी उम्र भी क्यों न हो वह एक दिन समाप्त अवश्य होगी। यदि सतपुरुष परमात्मा (कविर्देव) कबीर साहेब के नुमांयदे पूर्ण संत (सतगुरु) जो तीन नाम का मंत्र (जिसमें एक ओ3म तथा तत् और सत् सांकेतिक हैं) देता है तथा उसे पूर्ण संत द्वारा नाम दान करने का आदेश है, उससे उपदेश लेकर नाम की कमाई करेंगे तो हम सतलोक के अधिकारी हंस हो सकते हैं। सत्य साधना बिना बहुत लम्बी उम्र कोई काम नहीं आएगी क्योंकि निरंजन लोक में दुःख ही दुःख है।

कबीर, जीवना तो थोड़ा ही भला, जै सत सुमरन होय।
लाख वर्ष का जीवना, लेखै धरै ना कोय।।

कबीर साहिब अपनी (पूर्णब्रह्म की) जानकारी स्वयं बताते हैं कि इन परमात्माओं से ऊपर असंख भुजा का परमात्मा सतपुरुष है जो सत्यलोक (सच्च खण्ड, सतधाम) में रहता है तथा उसके अन्तर्गत सर्वलोक ब्रह्म (काल) के 21 ब्रह्मण्ड व ब्रह्मा, विष्णु, शिव शक्ति के लोक तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड व अन्य सर्व ब्रह्मण्ड, आते हैं और वहाँ पर सत्यनाम-सारनाम के जाप द्वारा जाया जाएगा जो पूरे गुरु से प्राप्त होता है। सच्चखण्ड (सतलोक) में जो आत्मा चली जाती है उसका पुनर्जन्म नहीं होता। सतपुरुष (पूर्णब्रह्म) कबीर साहेब (कविर्देव) ही अन्य लोकों में स्वयं ही भिन्न-भिन्न नामों से विराजमान है। जैसे अलख लोक में अलख पुरुष, अगम लोक में अगम पुरुष तथा अकह लोक में अनामी पुरुष रूप में विराजमान है। ये तो उपमात्मक नाम हैं, परन्तु वास्तविक नाम उस पूर्ण पुरुष का कविर्देव (भाषा भिन्न होकर कबीर साहेब) है।

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