Saturday 26 April 2014

तब साधना के उसी अंग पर ध्यान दीजिए.

सुनो सखा कहे कृपानिधाना|जिससे जय होये वह रथ दूजा||
शौर्य धैर्य रथ के को पहिया|सत्यशील दृढ ध्वजा पताका ||
- रामचरितमानस हिंदी (लं. का. ७९.२-३)
विभीषण जी से प्रभु राम ने रथ के बहाने साधना के रहस्य का वर्णन किया है. सभी साधक भाई इसे जानें. उस साधना रूपी रथ के शौर्य और धैर्य दो पहिये हैं. शौर्य है विपरीत परिस्थितियों में साहस दिखाना और धैर्य है विपरीत परिस्थितियों में धर्म से ना डिगना. सत्य, आत्मा ध्वजा है, और अच्छा चरित्र पताका है. पताका का अर्थ है "जो दूर से ही आपका परिचय प्रदान कर दे." हमारा अच्छा चरित्र ही दूर तक हमारा परिचय पहुंचा देता है.
सभी भक्त ध्यान दें कि, जब साधक साधना कर्ता है तो माया इसी रथ के विभिन्न अंगों (पहिया आदि जिनका वर्णन यहाँ किया जा रहा है) को नष्ट करने के लिये उन पर प्रहार करती है. अतः अपने साधक जीवन में होने वाली घटनाओं को इस रथ से जोड़ कर देखेंगे तो आपको यह पता लग जायेगा कि साधना में कहाँ कमी हो रही है. तब साधना के उसी अंग पर ध्यान दीजिए. साधना पूर्ण होगी

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