Tuesday 29 April 2014

प्रामाणिकता और बढ़ जाती है।

खालक खलक खलक में खालक......महाशून्य केवल महाशून्य है, उसे मानवीय लघु बुद्धि नहीं समझ सकती। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह अपार है, असीमित है और अज्ञात है। उसी महाशून्य से सब कुछ प्रकट होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सृष्टि की उत्पत्ति को तर्क से जानना संभव नहीं है। काफरा नामक एक वैज्ञानिक ने लिखा है कि सृष्टि का विकास हुआ है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि पूरे ब्रामांड में केवल जल ही जल था। एक दिन भयंकर विस्फोट हुआ। जल के ऊपर कुछ ठोस पदार्थ जमने लगा और फिर पृथ्वी बन गई, लेकिन कोई भी व्यक्ति प्रमाण सहित कुछ भी बता नहीं पा रहा है। जो भी हो, इतना तो माना ही जा सकता है इस संपूर्ण अगम ब्रामांड की उत्पत्ति किसी अदृश्य सत्ता से हुई है। कुछ लोग पृथ्वी की उत्पत्ति कॉस्मिक धूल (चिदाकाश) से मानते हैं। यह कॉस्मिक धूल भी महाशून्य से प्रकट हुई है। पता नहीं किस वैज्ञानिक उपकरण से हमारे संतों ने उपनिषद में यह लिखा था, ‘पूर्ण से ही पूर्ण की उत्पत्ति हुई है। ब्रामांड पूर्ण है और उसी से पूर्ण की उत्पत्ति हुई है।’ अगर विज्ञान की दृष्टि से इसकी परिभाषा करें तो का अर्थ होता है ब्रामांड जिसका विस्तार हो, जो असीमित हो, अरूप हो, अदृश्य हो और महाशून्य हो।’महाशून्य के संबंध में एक और विचार लोगों के मन में उठ रहा है और इससे महाशून्य की प्रामाणिकता और बढ़ जाती है। इस विचार के अनुसार जब कोई पदार्थ है नहीं, कोई ठोस वस्तु का अस्तित्व नहीं है, इस संसार में कोई पहाड़, लोहा, पेड़-पौधे या कोई भी वस्तु, जब ठोस नहीं है, तो निश्चित रूप से ये सब ऊर्जा हैं और ऊर्जा का अर्थ है अस्तित्वहीन। जिस प्रकार परमात्मा को अरूप मानते हैं, वह भी महाशून्य हैं। स्थूल की खोज हम कर सकते हैं, उसकी पहचान कर सकते हैं, लेकिन जो स्थूल नहीं है, कोई आकार-प्रकार नहीं है, उसकी पहचान स्थूलता के आधार पर नहीं हो सकती। हमें सर्वोच्च शक्ति के अहसास को कभी अपने से दूर नहीं करना चाहिए। परमात्मा अरूप होकर भी न जाने कितने रूपों में हमारे आसपास और हमारे भीतर मौजूद है। उस अदृश्य सत्ता के साथ साक्षात्कार के लिए हमें अपने मन की आंखों को खोलना होगा और शुद्ध अंत:करण के साथ उसे महसूस करना होगा।

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