Tuesday 29 April 2014

एक ही ईश्वर

जिस समय हिन्दू धर्म में , सती प्रथा, जाति प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, छुआछूत एवं बहुदेववाद आदि अनेक बुराइया फैली हुयी थी , जिसके कारण धर्म संकीर्ण होता जाता रहा था , उसी समय दूसरी ओर एक बालक बड़ा हो रहा था , जिसके भाग्य में वैदिक धर्म के प्रचार तथा समाजसुधार का श्रेय अंकित था। 

जिस समय ईसाई एवं इस्लाम मत के प्रचारक हिन्दू धर्म का खुला उपहास उड़ा रहे थे और अपने मतो का प्रचार कर रहे थे। युवको के समूह के समूह ईसाई होते जा रहे थे और हिन्दू , धर्म के प्रति उदासीन हो रहे थे। उस समय वह ब्रह्मचारी बालक, एक अंध संन्यासी से सब शास्त्रो एवं वैदिक व्याकरण की शिक्षा प्राप्‍त कर रहा था और अपने आपको उस कार्य के लिये तैयार कर रह था जो उसे आगे चलकर करना था ।

यह बालक , महर्षि दयानंद थे जिन्हौने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वासों और रूढियों-बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया। वे संन्यासी योद्धा कहलाए। दयानंद ने समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करते हुये , जनता का ध्यान उनके मूल धर्म की ओर आकृष्ट किया । महर्षि दयानंद ने - इस बात पर बल दिया कि - भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति है। सनातन वैदिक धर्म ही ईश्वरीय और सत्य धर्म है , एवं वेद ईश्वरीय वाणी है, ज्ञान के भंडार है । 

स्वामी दयानंद एक महान समाज सुधारक , धर्मसुधारक होने के साथ साथ एक प्रचंड राष्ट्रवादी थे। , उन्हौने स्त्रियो की शिक्षा और स्त्रियो को पुरुषो के समान अधिकार दिये जाने पर बल दिया। उन्हौने जात-पात , छूआ-छूत का विरोध करते हुये सामाजिक समानता , एकता और अंतर्जातीय विवाह और विधवा विवाह पर बल दिया। दयानंद जी ने मनुष्य को जन्म से नहीं कर्म से पहचाने जाने की शिक्षा दी , हिन्दू मुस्लिम ईसाई सभी को , एक होकर , एक ही ईश्वर , और एक ही ईश्वरीय धर्म , सनातन वैदिक धर्म के मंच पर लाकर , एकता स्थापित करने का प्रयास किया। ऐसे अनेकों महान कार्य करके महर्षि दयानंद ने , सत्य मार्ग की ओर, सत्य धर्म की ओर जनता को प्रेरित किया। आर्यसमाज की स्थापना महर्षि दयानंद ने ही की, आर्यसमाज का कार्य , वेद , वैदिक धर्म , वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार, व समाज मे व्याप्त रूढ़ियो को दूर करते हुये मनुष्य का वैचारिक उत्थान करना है। 

महर्षि दयानंद उस समय कर्मक्षेत्र में उतरे जब समाज किसी ऐसे ही महापुरुष के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था । ऐसी ही आवश्यकता के समय परमात्मा ने उनको यह प्रेरणा दी कि वे वैदिक धर्म की रक्षा करें और भूली-भटकी आर्य जाति को सन्मार्ग पर लायें, मृतप्राय संस्कृत भाषा में नवीन प्राणों का संचार करें और वैदिक साहित्य में नवीन प्रज्ञा को समाविष्ट करें । दयानंद जी ने वेदो का भाष्य किया जो उपलब्ध भाष्यो मे सर्वश्रेष्ठ है , इसके अतिरिक्त उन्हौने सत्यार्थ प्रकाश सहित अनेक ग्रंथ लिखकर सामाजिक एवं धार्मिक उत्थान की नीव रखी। अतः यह निर्विवाद सत्य है कि स्वामी दयानन्द का आगमन सनातन वैदिक धर्म, संस्कृत भाषा, वैदिक साहित्य और दर्शन के लिये संजीवनी सिद्ध हुआ। ऐसे महापुरुष, युगऋषि महर्षि दयानंद को कोटिशः नमन

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