Saturday 26 April 2014

तो मन भी शांत हो जाता है

प्रभु भला किया मुझे सीख दीन्ही | मर्यादा भी तुम्हरी बनाई ||
ढोल गंवार शूद्र पशु नारि | सकल ताड़ना के अधिकारी ||
सामान्य अर्थ :- प्रभु राम ने जब क्रोध किया तो सागर ने प्रकट होकर कहा कि "हे प्रभु! आपने क्रोध कर मुझे जो सीख दी है वो बहुत अच्छा किया परन्तु मैं जिस मर्यादा में बंधा हूँ वो भी तुम्हारी ही बनाई हुई है. ढोल गंवार शूद्र पशु और नारि ये पांचो ताड़ना अर्थात मर्यादा, अनुशासन में ही रहने के अधिकारी हैं. जैसे ढोल को ताल के अनुशासन से रहित होकर बजाया जाये तो वह बहुत बुरा बजेगा, गंवार को अनुशासन में न रखा जाये तो वह इधर उधर तोड़ फोड करता फिरेगा, शूद्र को अनुशासन में न रखा जाये तो उसका लोभ आदि विकार बहुत बढ़ जायेंगे, पशु को यदि खुला छोड़ दें तो वह भांति भांति के कांड रच देगा और नारि की यदि रक्षा न की जाये तो कामी लोग उसे चुरा कर ले जायेंगे. इस प्रकार प्रकृति में सबके लिये आपने मर्यादा बनाई है. और यही कारण है कि मैं सागर की मर्यादा में बंधा हूँ."
विशेष (गूढ़) अर्थ :- इस चौपाई में तुलसीदास जी ने पाँचों तत्त्वों के संतुलन, अनुशासन पर बल दिया है, जिससे क्लेश शांत होते हैं. ढोल आकाश तत्त्व का प्रतीक है, गंवार वायु तत्त्व का प्रतीक है, शूद्र अग्नि तत्त्व का प्रतीक है, पशु जल तत्त्व का प्रतीक है और नारि पृथ्वी तत्त्व का प्रतीक है. ढोल की भांति वाणी (शब्द) का संयम करने से आकाश तत्त्व संतुलित होता है, गंवार की भांति इधर-उधर ऊपर नीचे घुमते श्वास (प्राणवायु) का संयम करने, वस्तुओं के स्पर्श में संयम करने से वायु तत्त्व संतुलित होता है. शूद्र की भांति दृश्य जगत की वस्तुओं को देखने से जो मन में विकार होता है उसका संयम करने से अग्नि तत्त्व संतुलित होता है, पशु की भांति कामी न होकर वीर्य की रक्षा करने से जल तत्त्व संतुलित होता है, नारि की भांति शरीर की पवित्रता का संयम करने से पृथ्वी तत्त्व संतुलित होता है.
इस प्रकार जब सभी तत्त्व संतुलित हो जाते हैं तो मन भी शांत हो जाता है और जीव क्लेश्शून्य हो जता है.

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