Wednesday 30 April 2014

कितने दूर निकल गए

एक बार दो मित्र रेगिस्तान में जा रहे थे। रास्ते में दोनों में तू-तू, मैं–मैं हो गई। बात इतनी बढ़ गई की एक मित्र ने दूसरे को थप्पड़ जमा दिया।
जिसे थप्पड़ पड़ा वह झुका और वहां बालू पर लिख दिया ,”आज मेरे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा।”
दोनों मित्र चलते रहे, उन्हें पानी का तालाब दिखा, उन्होंने नहाने का निर्णय लिया।
जिस मित्र को झापड़ पड़ा था, वह दलदल में फँस गया, किंतु उसके मित्र ने उसे बचा लिया। उसने एक पत्थर पर लिखा,”आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई।”
जिसने उसे थप्पड़ मारा और जान बचाई, उसने पूछा, ”जब मैंने तुम्हें मारा तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों?”
मित्र ने कहा,” जब कोई हमारा दिल दुखाये, तो हमें बालू में लिखना चाहिए क्योंकि उसको भुला देना ही अच्छा है, क्षमा रुपी वायु एवं जल शीघ्र ही उसे मिटा देगा।
किंतु जब कोई अच्छा करे, उपकार करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिखना चाहिए जिससे कि कोई भी उसे मिटा न सके, वो हमें हमेशा याद रहे।
मित्रों, जिंदगी हे तो अच्छे-बूरे अनुभव तो होते रहेगें, महत्वपूर्ण ये हे कि हम क्या याद रखते हैं, और क्या भूल जाते हैं।
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते
लोग कहते है हम मुश्कुराते बहोत है ,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ.
मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा.....
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ

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