Tuesday 29 April 2014

आप अमर अविनाशी हैं।

भोले नाथ ने मां पार्वती को अमर कथा क्यों सुनाई?
भोले नाथ ने मां पार्वती को अमर कथा क्यों सुनाई?देवर्षि नारद भोले नाथ से भेंट हेतु कैलाश पर्वत पर गए। भोले नाथ कैलाश पर न थे वे किसी कार्य हेतु बाहर गए थे। मां पार्वती ने उनको उचित आसन पर बैठाया और उनका खूब आदर सत्कार किया। मां और नारद जी वार्तालाप करने लगे। जब बातें करते कुछ समय व्यतीत हो गया तो नारद जी ने मां से पूछा," मां भोले नाथ आपसे निष्कपट प्रेम तो करते हैं न?"
मां ने उत्तर दिया," हां...हां... वो तो मुझ से बहुत प्रेम करते हैं।"
नारज जी फिर बोले," आपकी हर प्रकार की सेवा से वे संतुष्ट तो हैं न?"
नारद जी के इतना पूछते ही मां भोले नाथ की अपने प्रति सहज प्रीति का बखान करने लगी। अब नारद जी तीखा प्रहार करते हुए बोले," अगर भोले नाथ आपसे इतना प्रेम करते हैं तो यह बताएं जो भोले नाथ के गले में मुण्डों की माला है, वे किसके मुण्ड हैं?"
मां पार्वती कुछ समय तो मौन रही, फिर बोली, "देवर्षि न तो मैंने यह बात उनसे कभी पूछी और न ही उन्होंने मुझे बताना अवश्यक समझा।"
नारद जी व्यंग स्वर में बोले," फिर यह कैसा निष्कपट सहज प्रेम है। जो अपने पति परमेश्वर के रूप का ही आपको ज्ञात नहीं है।"
मां इससे पहले कुछ बोल पाती नारद जी हरि नाम का गुनगान करते हुए वहां से चल पड़े। मां के मन में भोले नाथ के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया और वह क्रोध में कोपभवन में चली गई। कुछ समय उपरांत भोले नाथ कैलाश लौटे तो मां पार्वती को न पा कर उनके विषय में जानने के लिए गणों से पूछा तो पता चला वह क्रोध में आकर कोपभवन में बैठी हैं।
वह कोपभवन की ओर गए तो मां पार्वती जी की अवस्था देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। बहुत मनुहारि करने पर जब मां पार्वती जी ने रहस्त खोला तो भोले नाथ हंस पड़े और बोले," प्रिय! सबसे पहले यह बताओ कि मेरी अनुपस्थिति में यहां श्री नारद जी तो नहीं आए थे।"
मां पार्वती बोली," हां... हां... वह तो अभी-अभी यहां से गए हैं।"
भोले नाथ को समझते देर न लगी की यह सब किया धरा नारद जी का ही है। वह पार्वती जी से बोले," तुम मुण्डों के बारे में जानना चाहती हो न तो सुनों जो मेरे गले में मुण्डों की माला है उसमें से कुछ मुण्ड तो तुम्हारे हैं और कुछ मेरे अन्य प्रेमी भक्तों के हैं। जब जब तुम्हारा शरीर पात हुआ, तुम से अन्नय प्रेम होने के कारण में तुम्हारे उस मुण्ड को गले में पिरो लेता हूं।"
मां पार्वती जी ने गंभीर होकर कहा, मैं तो मरती जन्मती रहती हूं और आप अमर अविनाशी हैं। अगर आप मुझ से इतना प्रेम करते हैं तो मुझे भी अपने समान अमर अविनाथी क्यों नहीं बना लेते।
भोले नाथ ने पहले तो अपनी अमरता के रहस्य को छिपाना चाहा, फिर सोचा कि अपने प्रिय शिष्य मित्र से भी जब महत् पुरूष कुछ गोपनिय नहीं रखते, यह तो मेरी नित्य प्रेयसी है,ऐसा विचार कर अगले दिन भोले नाथ मां पार्वती को लेकर अमरनाथ तीर्थ पर चले गए और वहां जाकर उन्हें अमर कथा का रसपान करवाया। जिससे वह भी अमरता प्राप्त कर सकें।

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