Saturday 26 April 2014

हम लोग घर का खर्चा चला लेते है"।

एक बूढ़ा आदमी जो कि सुबह से घास काटनें में लगा हुआ था। दिन ढलने तक वह इतनी घास काट सका था, जिसे सिर पर लाद कर घोड़े वाले की हाट में बेचने ले जा सके। दूर खडा एक सुशिक्षित नौजवान बहुत देर से उस बुढे आदमी के प्रयास को देख रहा था। जब बूढा आदमी घास की गठरी उठाकर चलने लगा तो वो नवयुवक उसके नजदीक आया और उससे पूछने लगा, "बाबा, मैं बहुत देर से तुमें घास काटते हुए देख रहा हूं , तुम जो दिन भर से इतना परिश्रम कर रहे हो, क्या उससे इतना कमा पाओगे कि तुम्हारे घर का खर्चा चल सके? घर में तुम अकेले ही हो क्या?"

बूढे ने धीरे से मुस्कराते हुए कहा, " कई व्यक्तियों का मेरा परिवार है। अब जितने की घास बिकती है, उतने से ही हम लोग घर का खर्चा चला लेते है"।
युवक को आश्चयॅचकित देख कर बूढे ने पूछा, " मालूम पड़ता है कि तुमने अपनी कमाई से बढ़-चढ़ कर जीवन में महत्वाकांक्षाएं संजो रखी है, इसी से तुम्हे गरीबी में गुजारे से आश्चर्य हो रहा हैं"।
अब युवक से ओर तो कुछ कहते न बन पड़ा, पर अपनी झेंप मिटाने के लिए कहने लगा, " बाबा, गुजारा ही तो सब कुछ नहीं है, दान-पुण्य और भविष्य के लिए भी तो कुछ पैसा पास में होना चाहिए"।

उसकी बात सुनकर बूढा आदमी पहले तो जोर से हँस पड़ा और फिर बोलने लगा " बेटा, घास बेचनें में तो सिर्फ बच्चों का पेट ही भर पाता है, तो फिर दान-पुण्य कैसे किया जाए। लेकिन मैंने आस-पड़ोस और गांव वालों से चन्दा इकट्ठा कर एक कुआं बनवाया है, जिससे हमारा सारा गांव लाभ उठाता है। क्या अपने पास कुछ न होने पर दूसरे समर्थों से कुछ सहयोग लेकर कुछ भलाई का काम कर सकना दान की श्रेणी में नहीं आता ?"।

युवक निरूत्तर हो अपने रास्ते चला दिया और रास्ते भर यही सोचता रहा कि महत्वाकांक्षाएं संजोने ओर उन्ही की पूर्ति में जीवन लगा देना ही क्या जीवन जीने का एकमात्र तरीका  है।

1 comment: