Tuesday 29 April 2014

सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।

माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं,
जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........

क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के
लिए उपयोग की जाने वाली माला में
कितने मोती होते हैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए
जो माला उपयोग की जाती है उसमें
108 मोती होते हैं। माला में 108
ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई
धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद
हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक,
मोती या नगों से बनी होती है। यह
माला बहुत चमत्कारी प्रभाव
रखती है। किसी मंत्र का जप इस
माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य
भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में
108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य
है...
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप
सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से
बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय
को अपनाते हैं। जप के लिए
माला की आवश्यकता होती है और
इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त
नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के
लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह
साक्षात् महादेव का प्रतीक ही है।
रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश
करने की शक्ति भी होती है। इसके
साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में
मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण
करके साधक के शरीर में
पहुंचा देता है।
शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं
विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं
भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान
की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत
जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य
जरूरी है। इनके साथ ही माला के
बिना संख्याहीन किए गए जप
का भी पूर्ण फल प्राप्त
नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र
जप करें माला का उपयोग अवश्य
करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से
मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं
बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से
किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते
हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के
आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ
रहता है। इसीलिए
माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण
जिनके आधार पर माला में 108
मोती रखे जाते हैं...
माला में 108 मोती रहते हैं। इस
संबंध में शास्त्रों में दिया गया है
कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं
विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं
जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य
पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में
जितनी बार सांस लेता है उसी से
माला के मोतियों की संख्या 108
का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक
व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है।
दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक
कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष
12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है
10800 बार। इसी समय में देवी-
देवताओं का ध्यान करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर
सांस पर यानी पूजन के लिए
निर्धारित समय 12 घंटे में 10800
बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए
लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने
की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर
जप के लिए 108 संख्या निर्धारित
की गई है। इसी संख्या के आधार पर
जप की माला में 108 मोती होते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के
108 मोती और सूर्य की कलाओं
का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000
कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में
दो बार
अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह
माह उत्तरायण रहता है और छह माह
दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह
की एक स्थिति में 108000 बार
कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन
शून्य हटाकर माला के 108
मोती निर्धारित किए गए हैं।
माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-
एक कला का प्रतीक है। सूर्य
ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है,
समाज में मान-सम्मान दिलवाता है।
सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने
वाले देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12
भागों में विभाजित किया गया है।
इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन,
कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक,
धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12
राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र,
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और
केतु विचरण करते हैं। अत:
ग्रहों की संख्या 9
का गुणा किया जाए
राशियों की संख्या 12 में
तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108
संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व
करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार
ऋषियों ने में माला में 108
मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण
बताया है। ज्योतिष शास्त्र के
अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं।
हर नक्षत्र के 2 चरण होते हैं और 27
नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते
हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र
के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व
करता है।
माला के मोतियों से मालूम
हो जाता है कि मंत्र जप
की कितनी संख्या हो गई है। जप
की माला में सबसे ऊपर एक
बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू
कहलाता है। सुमेरू से ही जप
की संख्या प्रारंभ होती है और
यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक
चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच
जाता है तब
माला को पलटा लिया जाता है।
सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू
को माथे पर लगाकर नमन
करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल
प्राप्त होता है।

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