Sunday 27 April 2014

क्यों इसकी ईश्वर सहायता नहीं करता हैं

हिन्दुओं को यह आत्म-मन्थन करना ही होगा कि उसके दिन-रात मन्दिरों में घंटे बजाने, शान्ति का पाठ पढ़ने, ज्योतिषों के उज्जवल भविष्य बताने, चोबीसों घंटे अहिंसा-२ रटने आदि के तत्पश्चात भी उसी का अतिक्रमण , उसी पर अत्याचार , उसी के देश में उसको आतंकवादी बताने का बार-२ दुस्साहस, उसी की संख्या में घटाव और दुश्मनों की संख्या में निरंतर वृद्दि, उसी के धर्मस्थलों पर शत्रुओं का अधिकार, उसी की हत्या करके उसी पर आरोप, उसी के धर्मग्रंथों का अपमान, उसी के महापुरुषों की निंदा, उसी के सच्चे इतिहास को झूठा और झुठे को सच्चा बताना इत्यादि घोर दुर्दशा क्यों हो रही है – क्यों इसकी ईश्वर सहायता नहीं करता हैं ? इसका मतलब कहीं न कहीं तो कमी है जो ईश्वर की दिन-रात और शान्ति का राग गाने के पश्चात भी कोई उसकी पुकार सुनने को कोई तैयार नहीं है – ऐसा क्यों ? 

इसका उत्तर है – कर्महीन होकर के सब बातें ईश्वर की आड़ में छोड़ देना , स्वार्थी होना, किसी भी बात को बिना किसी ठोस प्रमाण और तर्क के मान लेना, चालाक शत्रुओं के वाक्छल और सिद्धांत-विरुद्ध बातों में फंस जाना, अहिंसा की गलत परिभाषा आत्म-हत्या का अनुसरण करना इत्यादि । यह समय बड़ा ही विकट और विपरीत परिस्तिथियों का है प्रत्येक व्यक्ति यदि केवल इस बात का भी अनुसरण करे कि – तर्क और प्रमाण के बिना मैं कुछ नहीं मानूंगा और न ही किसी का अनुसरण करूँगा तथा निस्वार्थ होकर न्याय का पक्ष लूँगा तो भी इन सभी समस्याओं का अन्त होना निश्चित हो जायेगा।

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