Wednesday 30 April 2014

स्वामी मेरे राम स्वामिनी सीता माता ।
परमसरल आरतपाल बड़े दाता ।।
राम दिए खाए जग राम दिए पाता ।
ध्याये जग राम को राम गुन गाता ।।
अग-जग ईश बड़े विधिहुं के विधाता ।
शिव मन मधुकर चरन जलजाता ।।
दीन मतिहीन जिसे जग ठुकराता ।
पूछे नहीं बात कोई मुंह फेर जाता ।।
राम दयाधाम के मन वो भी भाता ।
दीनानाथ पाहि कहि नयन जल लाता ।।
तुम्हीं नाथ मेरे कहि जो बताता ।
सुनें सीतानाथ सारी जो भी सुनाता ।।
समय जाये होता क्या चाहे पछिताता ।
समय रहे मन काहे नेह न लगाता ।।
राम बिना भूँखा अन बीच न अघाता ।
रामजी से नेह कर कौन घबराता ?
सुनि गुन राम जेहि मन न लुभाता ।
अचरज कहाँ जो फिरे रिरियाता ।।
मणि आये हाथ कण जान जो बहाता ।
जग जाये राम संग मन नहीं राता ।।
पानी संग दूध के मोल ज्यों बिकाता ।
राम नाम संग त्यों अघी तर जाता ।।
नाम मणि धातु जन कनक बनाता ।
प्रगट प्रभाव जग भूला न दिखाता ।।
खाए, फिरे सब जग काल धरि खाता ।
संतोष जान जीवन राम संग नाता ।।

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