Wednesday 30 April 2014

जो किसी ने किनारा दिखाया

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को 
मिल जाये तरुवर की छाया 
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं 
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम
भटका हुआ मेरा मन था कोई, मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया
शीतल बने आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाए रातें, जो थी अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरूभूमी ने जैसे सावन का संदेस पाया
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो, उस पर कदम मैं बढ़ाऊ
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में, मैं ना कभी डगमगाऊ
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया

1 comment: