Tuesday 29 April 2014

यह बात समस्त संसार और शास्त्रों द्वारा स्पष्ट: कही गयी है |

किसी भी साधक को गुरु के बिना ज्ञान एवं ध्यान का मार्ग नहीं मिल पाता, न वह गुरु के बिना आत्मविचार में ही प्रवत्त हो सकता है | गुरु के बिना साधक का प्रभु में न प्रेम हो सकता है, न प्रीति; तथा न वह उसके बिना सदाचार एवं सन्तोष आदि सद्गुण ही प्राप्त कर सकता है | गुरु के बिना साधक को न आत्मज्ञान – पिपासा हो सकती है और न उस के हृदय में ज्ञान का प्रकाश ही हो सकता है; न उसके जगद्विषयक भ्रम एवं सन्देह ही दूर हो सकते हैं | जैसे किसी सच्चे पथप्रदर्शक के बिना मार्गज्ञान नहीं हो पाता; या जैसे पैसे(कौड़ी) के बिना बाजार से कोई वस्तु नहीं खरीदी जा सकती;  वैसे ही 'गुरु के बिना किसी भी साधक को सन्मार्ग में प्रवृत्ति नहीं हो सकती' – यह बात समस्त संसार और शास्त्रों द्वारा स्पष्ट: कही गयी है |

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