Tuesday 29 April 2014

मीरा ने खोजा मिल गये

जिस पानी में मछली पैदा होती है उसी पानी में मेढ़क भी पैदा होता है. कछुआ भी पैदा होता है. लेकिन जो प्रेम मछली जानती है वो प्रेम मेढ़क और कछुए नहीं जानते. मछली पानी के बिना मर जायेगी. मैं भी गिरधारी के बिना मर जाऊँगी.

मेढ़क तो सूखे में सालों बेहोश, कोमा में पड़े रहते हैं, पर मरते नहीं, पर मछली मर जाती है. वैसे ही मैं हूँ, मैं गिरधारी बिना नहीं जी सकती.

हम लोग तो कछुआ और मेढ़क हैं, जिनको प्रभु से प्रेम नहीं. भक्त्त तो प्रभु-प्रेम के बिना नहीं जी सकता .

"जिन खोजा नित पाईया, गहरे पानी बैठ,
मै वोरी ढूंढ्न गई, रही किनारे बैठ.।"

जिस ने दूंढा उसे मिल गया, 'हे नाथ मै डरपोक किनारे बैठा रहा मुझे कुछ नहीं मिला, मीरा ने खोजा मिल गये'.

"जब तक ह्रदय में प्रभु को पाने कि लालसा इस हद तक ना पैदा हो जाए कि उसके बिना जीना मुहाल हो, तब तक उसे या उसके प्रेम का पाने का निरन्तर प्रयास करते रहना है, और उसके लिए सच्चे भक्तों का संग उनका सत्संग निहायत जरूरी है.।"

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