Sunday 27 April 2014

भक्ति जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण है

 मैल को धोने से क्या मैल छूट सकता है। जल को मथने से क्या किसी को ‍घी मिल सकता है। कभी नहीं। इसी प्रकार प्रेम-भक्ति रूपी निर्मल जल के बिना अंदर का मैल कभी नहीं छूट सकता। प्रभु की भक्ति के बिना जीवन नीरस है अर्थात् रसहीन है। प्रभु भक्ति का स्वाद ऐसा स्वाद है जिसने इस स्वाद को चख लिया, उसको दुनिया के सारे स्वाद फीके लगेंगे। 

भक्ति जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितना स्वादिष्ट भोजन में नमक।

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