Wednesday 30 April 2014

आपके बिना मेरा कौन है

प्रार्थना
हे नाथ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे
प्यारे लगें। केवल यही मेरी माँग है और कोई
माँग नहीं।
हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में
डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुःखों में डाल दें,
पर आप मुझे प्यारे लगें।
हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूँ,
ऐसी व्याकुलता आप दे दें।
हे नाथ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें
कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूँ।
हे नाथ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे
कहूँ और कौन सुने? हे मेरे शरण्य! मैं
कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं।
मैं भूला हुआ कइयोंको अपना मानता रहा।
उनसे धोखा खाया, फिर
भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें!
हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण!
हे पतितपावन! हे दीनबन्धो! हे
अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे
निराधार के आधार! हे अकारणकरुणावरुणा
लय! हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे
असहायक के सहायक! क्या आप मेरे को जानते
नहीं, मैं कितना भग्नप्रतिज्ञ, कैसा कृतघ्न,
कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी,
कैसा अकरण-करणपरायण हूँ। अनन्त दुःखों के
कारण स्वरूप भोगों को भोगकर-जानकर
भी आसक्त रहनेवाला, अहितको हितकर
माननेवाला, बार-बार ठोकरें खाकर
भी नहीं चेतनेवाला, आपसे विमुख होकर
बार-बार दुःख पानेवाला, चेतकर भी न
चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे
सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?
प्रभो! त्राहि माम्! त्राहि माम्!
पाहि माम्! पाहि माम्!! हेप्रभो! हे
विभो! मैं आँख पसार कर देखता हूँ तो मन-
बुद्धि-प्राण -इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे
नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे कैसे
हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर
वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह
दशा क्या आपसे किञ्चिन्मात्र
भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूँ!
हे नाथ! हे नाथ!! हे मेरे नाथ!!! हे
दीनबन्धो! हे प्रभो! आप अपनी तरफ से
सरण में ले लें। बस, केवल आप प्यारे लगें। हे
प्रभो! आप अपनी तरफ से सरण में ले लें।

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