Wednesday 30 April 2014

           आत्मबोध 
कसाई की दुकान में बंधा हुआ बकरा घास चरता है, मुग्ध होकर... उसके सामने कोई सब्जी आदि का छिलका फेंक दो तो वह खाने को टूट पड़ता है। कसाई के हाथ में पड़ा हुआ बकरा अपनी मौत को नहीं देखता। वह बुद्धू नहीं सोच पाता भागने की बात और खाने में मुग्ध रहता है, लेकिन न मालूम कसाई कब आए और कान पकड़कर उसे जबहखाने में ले जाए-वैसे ही हमलोग हैं। न मालूम कब काल हमलोगों के कान पकड़कर ले जाएगा पता नहीं, पर अज्ञानी लोग संसार को राजसुख जैसा समझकर मुग्ध हो जाते है। 
सर अवसर जाने नहीं, पेट भरन सो काम।
मनुष्य का शरीर मिला, सत्संग मिला, सद्गुरु मिले, इतना सुंदर अवसर है, इसको तो वह जानता नहीं है, बस पेट भरने की ही इन्हें चिंता लगी रहती है।
बहनों को भोजन बनाने की चिंता और भाइयों को भोजन जुटाने की चिंता। बस भोजन और भोजन। पेट-पेट। पेट परमात्मा ने नहीं दिया जैसे शाप ही दे दिया। पशु-पक्षी लोग जैसे पेट भरने के पीछे बेहाल हैं, वैसे ही मनुष्य भी पेट के पीछे बेहाल है।
कबीर साहब कहते है, भक्त पेट के पीछे बेहाल नहीं रहता।
क्षूधा काली कूकरी , करे भजन में भंग ।
वाको टुकड़ा डाल के , भजन कर निसंग।।
अर्थात् भूख काली कुतिया है, जो भजन-सुमिरण में विघ्न डालती है। अतः उसे टुकड़ा डालो और भजन करो।
शरीर के भरण-पोषण के लिए अर्थोपार्जन चाहिए। शरीर के रक्षार्थ वह भी करो, लेकिन वही जीवन का लक्ष्य नहीं बना लो। उसे ही जीवन का सब कुछ मत समझ लो। पेट पालने के लिए मनुष्य का तन लेकर दुनिया में तुम नहीं आए। अगर पेट पालना ही कर्तव्य होता तो इतनी विकसित बुद्धि भगवान क्यों देते? मनुष्य क्यों बनाते? घोड़ा, गधा, गाय क्यों नहीं बना देते? इसका मतलब है कि तुम्हारा कर्तव्य केवल पेट भरने तक नहीं है। तुम इस अवसर को चुको नहीं। परमात्मा की पुकार को सुनो। 
परमात्मा ने तुम्हारे हृदयद्वार में जो दस्तक दी है, इस आवाज पर विश्वास करो और जानो कि परमात्मा आपसे प्यार करते हैं और आपको अपनाना चाहते हैं। वे आपलोगों से आग्रह करते हैं कि आप भी परमात्मा को अपना लो। आप परमात्मा को अपना लोगे तो सफल, शांत और लक्ष्य को प्राप्त करके मस्त-मग्न हो जाओगे.

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