Tuesday 8 July 2014

मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं है

निधि वन की एक घटना

एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु
की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना मोहित
हुआ कि वह हर समय वृन्दावन आने की सोचने
लगा उसके गुरु उसे निधिवन के बारे में
बताया करते थे
और कहते थे किआज भी भगवान
यहाँ रात्रि को रास रचाने आते है
उस भक्त को इस बात पर विश्वास
नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय
किया कि वृन्दावन जाऊंगा और ऐसा ही हुआ
श्री राधा रानी की कृपा हुई और आ
गया वृन्दावन उसने जी भर कर
बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन
किया लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन
नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास
रचाते है
उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर
देखता हू इसलिए वो वही पर रूक गया और देर
तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब
एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया जब
शाम के वक़्त वहा पुजारी निधिवन
को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस
भक्त पर पड गयी और उसे वहा से जाने
को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया
लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप
गया और फिर से शाम होते
ही पुजारियों द्वारा निकाला गयl
आखिर में उसने निधिवन में एक
ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़
सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात
वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब
सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई
तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है
और उसके मुह से झाग निकल रहा है तब उन
सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़
वहा पर जमा हो गयी
.
.
सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश
की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था
लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई
आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और ऐसे
ही वो ३ दिन तक बिना कुछ खाए पीये ऐसे
ही बेसुध पड़ा रहा और ५ दिन बाद उसके गुरु
जो कि गोवर्धन में रहते थे बताया गया तब
उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने
आश्रम में ले आये
आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन
सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से
लिखने के लिए कलम और कागज़
माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम
और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने
चले गए
.
जब गुरूजी स्नान करके आश्रम में आये
तो पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग
कर अपना शरीर त्याग दिया था और उस
कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था
.
.
उस पर लिखा था- "गुरूजी मैंने यह बात
किसी को भी नहीं बताई है, पहले सिर्फ
आपको ही बताना चाहता हू ,
आप कहते थे न कि निधिवन में आज
भी भगवान् रास रचाने आते है और मैं
आपकी कही बात पर यकीन नहीं करता था,
लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात
बांके बिहारी का राधा रानी के साथ गोपियों के
साथ रास रचाते हुए
दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोई
भी इच्छा नहीं है ,
इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने
प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर
करूँगा भी क्या ?
श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये
दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है,
इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम
प्रणाम स्वीकार कीजिये " बंधुओ वो पत्र
जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था
आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में
रखा हुआ है
और बंगाली भाषा में लिखा हुआ है.
बोलो श्री बाकें बिहारी लाल की जय.........

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