Saturday, 26 April 2014

किस जुबान से करूँ शुक्रिया

तेरी शान तेरे जलाल को मैंने जब से दिल में बसा लिया। मैंने सब चिराग बुझा दिए, तेरा इक चिराग जला लिया॥ तेरी आस ही मेरी आस ही, तेरी धुल मेरा लिबास है। अब मुझे तू अपना बना भी ले, मैंने तुझको अपना बना लिया॥ मुझे धुप छाव का गम नहीं, तेरे कांटे फूलों से कम नहीं। मुझे जान से भी अज़ीज़ है, जिस चमन से तेरा दीया लिया॥ तेरी रहमतें बेहिसाब हैं, किस जुबान से करूँ शुक्रिया। कभी मुझ से कोई खता हुई तूने फिर से मुझ को उठा लिया॥ मेरी हार तेरी ही हार है, मेरी जीत तेरी ही जीत है। मैंने सौंपा तुझको वो सभी, तूने जो मुझ को दिया॥ मेरे साथ है साया श्याम का, बस यह तस्सल्ली की बात है। मैं तेरी नज़र से नहीं गिरा, मुझे हर नज़र ने गिरा दिया॥

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