Wednesday 25 June 2014

ईश्वर को खुद में खोजो

                                       :ईश्वर आप में है ,उसे बाहर मत खोजिये 
नास्तिकों को अगर छोड़ दें तो हम सभी आस्तिक लोग ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं ,उस पर विश्वास करते हैं ,मानते हैं की वह है और वही इस समस्त ब्रह्माण्ड का नियंता है |हमारी जरुरत पर वह सुनता है |हम अपनी जरुरत पर उसे पुकारते हैं ,उससे मदद की अपेक्षा रखते हैं |इसके लिए हम मंदिरों-मस्जिदों-गुरुद्वारों में माथा टेकते है ,सर झुकाते हैं ,पूजा -पाठ -प्रार्थना करते हैं ,अनुष्ठान करते हैं और विभिन्न तरह से उसे अपनी और आकर्षित करने या प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं |किन्तु हममे से बहुतेरे उसे बाहर ही खोजते हैं और मानते हैं की वह मंदिरों-मस्जिदों-गुरुद्वारों में ही रहता है |हममे से बहुत कम लोगों का ध्यान होता है की वह तो अन्तर्यामी है ,जो कण कण में है ,हमारे अन्दर भी है |उसका मूल सूत्र अथवा अंश तो हमारे अन्दर ही है ,जब तक इस अंश से जुड़कर नहीं पुकारेंगे वह नहीं सुन पायेगा ,कारण की वह इसी अंश से आपसे जुड़ा होता है |वह तो हर इंसान में व्याप्त होता है |

बहुत कम लोगों को जानकारी होती है की शरीर में ऊर्जा चक्र होते हैं जो भौतिक शरीर में अदृश्य होते हैं किन्तु वाही इस शरीर के नियंत्रक होते हैं |अक्सर लोग मानते हैं की भूत-प्रेत होते हैं बहुतों ने देखा भी होता है या ऐसा कुछ अनुभव किया होता है ,|यह उसी ऊर्जा शरीर और चक्रों का प्रमाण होता है |इसी ऊर्जा शरीर का क्षरण क्रमशः होने पर स्वाभाविक मृत्यु होती है और आकस्मिक मृत्यु होने पर ,इसी का क्षरण तुरंत न हो पाने के कारण यह ऊर्जा शरीर ही प्रेत या भूत के रूप में सदियों तक अपने इस ऊर्जा शरीर के क्षरण का इंतज़ार करता है |इसी ऊर्जा शरीर में नौ मुख्य चक्र होते हैं ,इस ऊर्जा शरीर को सूक्ष्म शरीर कहते हैं |इन नौ चक्रों से जुड़े अनेक चक्र होते हैं |इन चक्रों से ही विभिन्न शक्तियों या देवी देवताओं का सम्बन्ध होता है या जुड़ाव होता है |इन्ही चक्रों के माध्यम से सम्बंधित देवी-देवता की वातावरण में उपस्थित बिखरी ऊर्जा जुडी होती है |इस प्रकार ही वातावरण या प्रकृति में उपस्थित समस्त दैवीय शक्तियां व्यक्ति अथवा मनुष्य से जुड़े होते हैं |इसी को कहा जाता है की ईश्वर आपके अन्दर होता है ,सभी देवी-देवता आपके अन्दर होते हैं क्योकि सभी आपके अन्दर के किसी न किसी चक्र से जुड़े होते हैं ,इसी को कहा जाता है की कण कण में भगवान् है ,क्योकि वह ऊर्जा समस्त ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है |इसी लिए कहा जाता है की ईश्वर सभी इंसानों में ,सभी जीवों में ,सभी वनस्पतियों में ,सभी पदार्थों में उपस्थित होता है ,क्योकि वह ऊर्जा रूप है और समस्त ब्रह्माण्ड में फैला है |इसी लिए तो कहा जाता है की वह निर्विकार-निरपेक्ष- निर्लिप्त होता है |सगुण-साकार साधना उसके विशिष्ट गुण या विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा की साधना होती है जिससे वह विशिष्ट ऊर्जा एकत्र हो विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करती है |इसी लिए कहा जाता है की ईश्वर को खुद में खोजो ,वह आपमें ही है ,क्योकि वास्तव में वह आपमें होता है ,इसलिए की जब वह कण कण में है तो आपमें भी है ,जब चक्रों से जुड़ा है तो आपमें हैं ,जब सभी पदार्थों में है तो आपमें है |उसे अपने में खोजने पर उससे संपर्क जल्दी होने की संभावना रहती है | 

यह सही है की मंदिरों का अपना प्रभाव होता है ,क्योकि वहां सकारात्मक ऊर्जा संचार अथवा उस शक्ति का प्रभाव अर्थात उसकी ऊर्जा का संघनन अधिक होता है और आसानी से प्राप्ति की सम्भावना होती है किन्तु जब तक अन्दर के उसी अंश के भाव से आप संतृप्त नहीं होते वह ऊर्जा आपसे जुड़ नहीं पाती |मंदिर आदि में दर्शन के समय भीड़ आदि अथवा विभिन्न कारणों से मानसिक भटकाव भी हो सकता है ,वहां दर्शन का अधिक लाभ तब है जब आप दर्शन करके कुछ समय वहां बैठें और उनकी मूर्ती और गुण का एकाग्र हो मानसिक चिंतन करें |इस स्थिति में वहां उपस्थित अधिक ऊर्जा का लाभ आपको अधिक मिल सकता है ,वह ऊर्जा आपसे जुड़ जाती है |यदि जल्दबाजी में अथवा बिना एकाग्रता के मात्र उपस्थिति दर्ज कराते हैं तब सामान्य ही लाभ की उम्मीद रखें ,यद्यपि लाभ तो होता है |सबसे बेहतर होता है की आप अपने अन्दर उपस्थित उस शक्ति को जगाएं ,उसका साक्षात्कार करें |ऐसा होने पर आपके अन्दर उपस्थित उस शक्ति से सम्बंधित चक्र अधिक क्रियाशील होने लगता है जिससे उससे तरंगें अधिक मात्र में उत्सर्जित होने लगती हैं |यह तरंगे वातावरण में फ़ैल कर उस शक्ति से सम्बंधित तरंगों से संपर्क कर उस शक्ति की ऊर्जा को आपकी और आकर्षित करती हैं ,जिससे आपके शरीर और आसपास उस शक्ति की ऊर्जा का संघनन और मात्रा बढने लगती है ,साथ ही आपके अन्दर उस शक्ति से सम्बंधित चक्र और अधिक शक्तिशाली होने लगता है |आपका सीधा सम्बन्ध उस शक्ति या ऊर्जा या ईश्वर से बन जाता है |जो स्थायी होता है और सदैव लाभदायक होता है |इस स्थिति में वह शक्ति आपकी मानसिक तरंगों के साथ क्रिया करने लगती है अर्थात आपके मानसिक तरंग जिस दिशा में सोचते हैं उस दिशा में वह शक्ति भी बढने लगती है ,जिसके कारण आपके लक्षित उद्देश्य सफल होने लगते हैं |..

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