Wednesday 25 June 2014

अपनी बुधि का भी उपयोग करना चाहिय

चार पुरुष काशी में संजीवनी विद्या पढ़ने गये । जब विद्या पढ़ ली तो वापस घर लौट कर आ रहे थे । जंगल में विचार क रने लगे कि अपन ने विद्या की परीक्षा तो की ही नहीं । एक पानी का लोटा लाये और उनमें से प्रथम पुरुष ने लोटे से एक पानी की चुल्लू लेकर हड्डियों के ऊपर जंगल में फेंका । सारी हड्डियां सिमट करके एक ढेर हो गई । फिर दूसरे ने जल का छींटा मारा, तो हड्डियों का पशुओं के आकार का ढांचा बन गया । तीसरे ने ज्यों ही छींटा मारा तो उसमें खून, मांस, चमड़ी, रोम, आंखें, मुंह इत्यादि बनकर बबर शेर बन गया । पांचवॉं एक गुरुमुखी बुद्धिमान् पुरुष भी उसके साथ था । वह कहने लगा, बस - बस, अब रहने दो । आपकी विद्या की परीक्षा तो अब हो ही गई । चौथा बोला ~ नहीं, मैंने तो की ही नहीं परीक्षा । तब गुरुमुखी तो एक वृक्ष पर चढ़ गया । उसने ज्यों ही जल का छींटा, मंत्र पढ़कर मारा, तो उसमें एकदम चेतन सत्ता आ गई और तत्काल गर्जना करके एक - एक पंजा चारों के मारा, वे सभी काल का ग्रास बन गये ।
विद्या पढ़ी सजीवनी, किया नहीं विचार । 
तुलसी बुद्धिवन्त ऊबर्यो, चढि तरवर की डार ॥ - तुलसी

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