Thursday 26 June 2014

जैसे कभी कोई पराया था

राधे-राधे श्याम मिला दे....!
यही सत्य है। यदि श्याम से मिलना है तो उसका मार्ग श्रीराधा ही प्रशस्त कर सकती हैं; अन्य कोई नहीं ! अन्य कोई? अन्य कोई है भी तो नहीं ! श्रीकृष्ण की आत्मा हैं श्रीराधा ! दिव्य देह की दिव्यात्मा ! 
भौतिक जगत में भी जब देह किसी को अपनाती है तो उसे कई प्रकार से तौलती है, परखती है, एक निश्चित दूरी बनये रखती है परन्तु जब एक ही नजर में किसी को आत्मा अपना ले तो कोई परीक्षा नहीं ! नितान्त अपनापन ! जैसे कभी कोई पराया था ही नहीं ! सुखद अनूभूति से ह्रदय अनायास ही भर जाता है !
श्रीकृष्ण अपना प्रेम बहुत तौल-मोलकर देते हैं। उन्हें अपना बनाना सरल नहीं है और न ही सरल है उनका होना ! उनसे प्रेम करने में बहुधा वह छठी का दूध स्मरण करा देते हैं ! वे कब तक तुम्हारे रहेंगे अथवा हम कब तक उनके रह पायेंगे; इसमें भी सदैव एक अनिश्चितता ही रहती है। और क्यूँ न हो ! उनसे मिलन भी तो सहज नहीं ! कल्प-कल्प तक साधनरत रहने वाले भी नहीं जानते कि दर्शन कब होंगे ! किन्तु करुणामयी श्रीराधा ! अहा ! वे तो कोई हिसाब-किताब जानती ही नहीं ! पाप-पुण्य? कोई परिचय ही नहीं ! कितना देना है? कितना देना चाहिये? वे तो यह भी नहीं जानतीं ! उनके अनियारे नयनों से बहती करुणा और कृपा के वरद-हस्त से अहर्निश कृपा बरसती ही रहती है और उनका भोलापन तो देखिये कि वे स्वयं अपने इस गुण से अनभिज्ञ हैं ! वे नित्यकिशोरी ही तो जगतजननी हैं ! पिता को तो अपनी संतानों के कल्याण के लिये व्यवहारिक होना ही पड़ता है किन्तु माँ ? माँ तो माँ ही होती है ! वात्सल्यपूर्ण आँचल की छाँव में प्रेम से दुलारते हुए ! यहाँ तक कि बहुधा श्रीनन्दकिशोर को भी उलाहना दे देती हैं कि मेरे बच्चों से उदारतापूर्ण व्यवहार ही किया कीजिये ! मुस्करा देते हैं प्रभु ! जानते हैं कि करुणा और प्रेम का महाभाव-स्वरुप इसके अतिरिक्त कह भी क्या सकता हैं ! और आत्मा की वाणी देह को स्वीकारनी ही पड़ती है; प्रेम से भरकर ! कृतज्ञता का अनुभव करते हुए ! जैसी स्वामिनी की आज्ञा ! और श्रीजी लजाकर मुख पर घूँघट ओढ़े, मुस्कराते हुए अपनी दृष्टि को श्रीश्यामसुन्दर के चरणों की ओर कर लेती हैं ! कितने ही जीवों का केवल-मात्र श्रीजी की ही अहैतुकी कृपा से उद्धार हो रहा है ! तो पकड़ लो न उनके श्रीचरण ! जिनके चिंतन-मात्र से ह्रदय प्रेम-रस में डूबने-उतराने लगता है ! रसिकजन किसी अन्य ही लोक में रहते दिखते हैं ! यह महाभाव-स्वरुपा श्रीराधाजी के श्रीचरणों के क्षण-मात्र के चिंतन का प्रभाव है ! अदभुत ! अनिवर्चनीय ! वर्णनातीत ! रस-समुद्र ! 

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