Monday 30 June 2014

देवता समझा जाता है

सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा की भौहों से उत्पन्न एक प्रकार के देवता, जो क्रोधरूप माने जाते हैं और जिनसे भूत, प्रेत, पिशाच उत्पन्न कहे जाते हैं। 'अज', 'एकपाद्', 'अहिर्बुध्न्य', 'पिनाकी', 'अपराजित', 'त्र्यम्बक', 'महेश्वर', 'वृषाकपि', 'शंभु', 'हरण' और 'ईश्वर', ये ही कुल ग्यारह रुद्र हैं। 'गरुड़पुराण' में इनके जो नाम दिये हैं, वे कुछ भिन्न हैं, पर संख्या ग्यारह ही है। कूर्मपुराणानुसार जब ब्रह्मा सृष्टि उत्पन्न न कर सके, तब मारे क्रोध के उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े, जिससे भूत प्रेतों की सृष्टि हुई और उनके मुख से ग्यारह रुद्र निकल आये। ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार ये उत्पन्न होते ही जोर-जोर से रोने लगे थे[4] इसी से इनका नाम रुद्र पड़ा। वैदिक साहित्य में अग्नि को ही रुद्र माना है, जिन्हें अग्नि-रूपी, वृष्टि करने वाला और गरजने वाला कहा गया है। इन्हें आपार्य भी कहते हैं।[
भगवान शंकर का एक रूप रुद्र है, जो उन्होंने कामदेव को भस्म करने के समय और दक्ष का यज्ञ ध्वंस करते समय धारण किया था। शंकर की उपासना जब 'रुद्र' या 'महाकाल' के रूप में की जाती है, तब उन्हें महाप्रलय या सारी सृष्टि को ध्वंस करने वाला देवता समझा जाता है। लेकिन महाप्रलय के पीछे ही नयी सृष्टि का भाव छिपा रहता है। शायद इसी से भगवान शंकर की पूजा लिंग और योनि के रूप में की जाती है, क्योंकि ये अंग ही सृष्टि के द्योतक समझे जाते हैं। लिंग=पुरुष की शक्ति=शिव का पुल्लिंग रूप और योनि=शंकर की उत्पादन शक्ति का स्त्रीलिंग रूप समझना चाहिए। संहार के पश्चात शंकर सृष्टि भी करते हैं। इनके दोनों कार्यों ने ही शंकर को महादेव बना दिया है, जिसे ईश्वर की संज्ञा से विभूषित कर दिया गया है।
विश्वकर्मा के एक पुत्र का नाम भी रुद्र है।

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