Wednesday 25 June 2014

तब वह भी गुरु के समान होता है

गुरु का वृत धारण करने वाले शिष्य को समझना चाहिये कि निर्गुण और सगुण के बीच गुरु ही आधार होता है । गुरु के बिना आचार । अन्दर बाहर की पवित्रता नहीं होती । और गुरु के बिना कोई भवसागर से पार नहीं होता । शिष्य को सीप के समान और गुरु को स्वाति की बूँद के समान समझना चाहिये । गुरु के सम्पर्क से तुच्छ जीव ( सीप ) मोती के समान अनमोल हो जाता है । गुरु पारस के और शिष्य लोहे के समान है । जैसे पारस लोहे को सोना बना देता है । गुरु मलयागिरि चंदन के समान है । तो शिष्य विषैले सर्प की तरह होता है । इस प्रकार वह गुरु की कृपा से शीतल होता है ।
गुरु समुद्र है । तो शिष्य उसमें उठने वाली तरंग है । गुरु दीपक है । तो शिष्य उसमें समर्पित हुआ पतंगा है । गुरु चन्द्रमा है । तो शिष्य चकोर है । गुरु सूर्य हैं । जो कमल रूपी शिष्य को विकसित करते हैं ।
इस प्रकार गुरु प्रेम को शिष्य विश्वास पूर्वक प्राप्त करे । गुरु के चरणों का स्पर्श और दर्शन प्राप्त करे । जब इस तरह कोई शिष्य गुरु का विशेष ध्यान करता है । तब वह भी गुरु के समान होता है ।
हे धर्मदास ! गुरु एवं गुरुओं में भी भेद है । यूँ तो सभी संसार ही गुरु गुरु कहता है । परन्तु वास्तव में गुरु वही है । जो सत्य शब्द या सार शब्द का ज्ञान कराने वाला है । उसका जगाने वाला या दिखाने वाला है । और सत्य ज्ञान के अनुसार आवागमन से मुक्ति दिलाकर आत्मा को उसके निज घर सत्यलोक पहुँचाये । गुरु जो मृत्यु से हमेशा के लिये छुङाकर अमृत शब्द ( सार शब्द ) दिखाते हैं । जिसकी शक्ति से हँस जीव अपने घर सत्यलोक को जाता है । उस गुरु में कुछ छल भेद नहीं है । अर्थात वह सच्चा ही है । ऐसे गुरु तथा उनके शिष्य का मत एक ही होता है । जबकि दूसरे गुरु शिष्यं में मतभेद होता है ।
संसार के लोगों के मन में अनेक प्रकार के कर्म करने की भावना है । यह सारा संसार उसी से लिपटा पङा है । काल निरंजन ने जीव को भृम जाल में डाल दिया है । जिससे उबर कर वह अपने ही इस सत्य को नहीं जान पाता कि वह नित्य अविनाशी और चैतन्य ज्ञान स्वरूप है ।
इस संसार में गुरु बहुत हैं । परन्तु वे सभी झूठी मान्यताओं और अँधविश्वास के बनाबटी जाल में फ़ँसे हुये हैं । और दूसरे जीवों को भी फ़ँसाते है । लेकिन समर्थ सदगुरु के बिना जीव का भृम कभी नहीं मिटेगा । क्योंकि काल निरंजन भी बहुत बलबान और भयंकर है । अतः ऐसी झूठी मान्यताओं अँधविश्वासों एवं परम्पराओं के फ़ंदे से छुङाने वाले सदगुरु की बलिहारी है । जो सत्यज्ञान का अजर अमर संदेश बताते हैं ।
अतः रात दिन शिष्य अपनी सुरति सदगुरु से लगाये । और पवित्र सेवा भावना से सच्चे साधु सन्तों के ह्रदय में स्थान बनाये । जिन सेवक भक्त शिष्यों पर सदगुरु दया करते हैं । उनके सब अशुभ कर्म बंधन आदि जलकर भस्म हो जाते हैं । शिष्य गुरु की सेवा के बदले किसी फ़ल की मन में आशा न रखे । तो सदगुरु उसके सब दुख बंधन काट देते हैं ।
जो सदगुरु के श्री चरणों में ध्यान लगाता है । वह जीव अमरलोक जाता है ।
कोई योगी योग साधना करता है । जिसमें खेचरी भूचरी चाचरी अगोचरी नाद चक्र भेदन आदि बहुत सी क्रियायें हैं । तब इन्हीं में उलझा हुआ वह योगी भी सत्य ज्ञान को नहीं जान पाता । और बिना सदगुरु के वह भी भवसागर से नहीं तरता ।

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