Saturday 28 June 2014

आकाश में सूर्य देवता अपना तेज

शुकदेवजी का अग्नि , जल और वायु आदि का हाल राजा परीक्षित से कहना ...

शुकदेवजी ने कहा - हे परीक्षित ! ब्रह्मा के एक दिन में चौदह इन्द्र राज्य भोगते हैं ! सन्ध्यासमय प्रलय होने से तीनों लोकों में सब जीवों का नाश हो जाता है ! उनके दिन के प्रमाण रात भी होती है ! रात के समय ब्रह्मा सो रहते हैं ! जब ब्रह्मा की आयु पूरी होकर महाप्रलय होता है तब सैंकडों वर्ष पहिले से अवर्षण होकर काल पड़ता है ! अन्न न उत्पन्न होने से सब जीव मारे भूख के मर जाते हैं ! पाताल में शेषनागजी विष उगलकर और आकाश में सूर्य देवता अपना तेज प्रकट करके चौदहों लोकों को जला देते हैं ! फिर मेघपति के पानी बरसाने से पृथ्वी पर जल के सिवा और कुछ दिखलाई नहीं देता !
जल , अग्नि , वायु , आकाश में , आकाश शब्द में , यह पाँच तत्व अहंकार में , अहंकार महतत्व में , महतत्व माया में और माया ईश्वर के रूप में समा जाती है ! केवल नारायणजी अविनाशी पुरुष , जिनका आदि-अन्त कोई नहीं जानता और उनके पास मन , शब्द , सतोगुण , रजोगुण , तमोगुण आदि पहुँच नहीं सकते , वर्तमान रहते हैं ! ये लक्षण महाप्रलय के हैं !
जागना , सोना , सुषुप्ति और संसारी उत्पत्ति माया के गुणों से समझनी चाहिए ! आदिपुरुष भगवान को ज्ञानरुपी आँख से देखने पर मायारूपी संसार झूठा मालूम होता है ! जिस तरह कपड़े में सूत के तार होते हैं उसी तरह सब जीवों में परमेश्वर की शक्ति व्यापत रहती है ! जिसने सूर्यरुपी ज्ञान समझा उसके ह्रदय में काम , क्रोध , मोह और लोभ का अँधियारा नहीं रहता ! वह देवता , मनुष्य , दैत्य और पशु आदि चौरासी लाख योनि को बराबर समझकर किसी के साथ शत्रुता व मित्रता नहीं रखता !
जिस तरह बत्ती जलने से दीपक का तेल कम होता और तेल चुक जाने से दीया बुझ जाता है , तेल का जलना कुछ मालूम नहीं होता उसी तरह कालपुरुष प्रतिदन तेज , बल , आयु क्षीण करते-करते मृत्यु आने पर सब जीवों को मार डालता है ! अज्ञानी मनुष्य अपना मरना याद नहीं रखता ! जो कोई कालपुरुष से बचना चाहे वह हरिभजन ( सद्कर्म ) व स्मरण ( सद्चिन्तन ) करके भवसागर पार उतर जावे !!

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