Sunday 29 June 2014

दुःख , पाप और अज्ञान छूट जाता है

शुकदेवजी ने कहा - हे राजन ! कलियुग में यज्ञ , तप व योगाभ्यास आदि कुछ नहीं बन पड़ता , परन्तु एक बात बहुत अच्छी है कि दूसरे युगों में संसारी मनुष्य सच्चे , धर्मात्मा और दयावान होने पर भी बहुत दिनों तक यज्ञ , तप पूजा और तीर्थ स्नान करने से मुक्त होते थे किन्तु कलियुग में केवल परमेश्वर का नाम जपने , उनकी लीला व कथा सच्चे मन से सुनने और शुभकर्म करने से मनुष्य भवसागर पार उतर जाते हैं ! जिस तरह महापापी अजामिल ब्राह्मण मरते समय नारायण नामक अपने बेटे को पुकारने से वैकुण्ठ को चला गया था उसी तरह कलियुग में परमेश्वर का नाम लेते ही सब पापों से छूटकर मनुष्य पवित्र हो जाते हैं ...
दूसरे युगों में अधर्म कम था , जब किसी से कुछ पाप हो जाता था तब वह उसका प्रायश्चित कर डालता था , कलयुग में बहुत अधर्म होने से कोई प्रायश्चित नहीं कर सकता , इसलिए दीनदयालु परमेश्वर केवल नाम लेने व शुभकर्म करने से सब पापों से छुड़ाकर सहज में मुक्त कर देते हैं ! तिस पर भी कलियुग में अज्ञानी मनुष्य दिनरात संसारी सुख में फँसे रहकर एक क्षण भी नारायणजी का स्मरण नहीं करते ! जिह्वा से वृथा बकते हैं , परमेश्वर का नाम नहीं लेते ! कलियुग में केवल भगवान का नाम लेने , पूजा , ध्यान व भजन करने , उनकी कथा व लीला सुनने और भक्ति रखने से मनुष्यों का सब दुःख , पाप और अज्ञान छूट जाता है ! जब उनके ह्रदय में नारायणजी की कृपा से ज्ञानरूपी दीपक प्रकाशित होता है तब मायारूपी अँधियारे से बाहर निकलकर मुक्ति पाते हैं ! मनुष्य सतयुग में तप , त्रेता में यज्ञ , द्वापर में पूजा , कलियुग में भजन व स्मरण ( सद्कर्म ) करने से कृतार्थ होता है !
सो हे राजन ! तुम भी श्रीकृष्णजी साँवली सूरत का ध्यान हृदय में लगावो तो चतुर्भुजी स्वरुप हो जावोगे ! तुमने कलियुग में उद्धार होने का धर्म जो पुछा था सो संसारीरुपी समुद्र से पार उतरने के लिए परमेश्वर की लीला व कथा सुनना व पढ़ना सहज समझना चाहिए ! 
इससे उत्तम कोई दूसरा उपाय नहीं है ! यह श्रीमद्भागवत पुराण जो ब्रह्माजी से नारदमुनि ने सुनकर वेदव्यासजी को बतलाया और मैंने उनसे पढ़कर तुमको सुनाया ! जब यही कथा सूतजी नैमिषार मिश्रिष शौनक आदिक अट्ठासी हजार ऋषिश्वारों को सुनावेंगे तब यह अमृतरूपी कथा कलियुग में प्रकट होकर संसारी मनुष्यों को भवसागर पार उतारेगी !!

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