Wednesday 18 June 2014

अपने बालको को अच्छे संस्कार

बालकृष्ण पाँच बरस के हुए और उन्हे वृन्दावन जाने की इच्छा हुई ।
गोकुल मेँ उत्पात हो रहे थे सो चाचा उपनन्द ने सोचा कि बालकोँ के साथ दूसरे गाँव मेँ चले जाना चाहिए ।। अतः सबने वृन्दावन को रहने योग्य माना ।।
" वनं वृन्दावनं नाम ।"
वृन्दा का अर्थ है भक्ति , सो भक्ति का वन वृन्दावन है । वालक के पाँच वर्ष के होने पर उसे गोकुल से वृन्दावन ले जाना चाहिए , अर्थात् लाड़ प्यार की अवस्था , प्राथमिक अवस्था , मेँ से अब उसे भक्ति के वन ले जाना चाहिए । पाँच वर्ष समाप्त होने पर लाड़ प्यार मे कमी की जानी चाहिए।
बालक को धर्मभीरु और संस्कारी बनाने के लिए बचपन से ही धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए । एकादशी के दिन उसे अन्नाहार नही देना चाहिए । अपने बालको को अच्छे संस्कार न देने वाले माता पिता उसके बैरी है ,
" माता बैरी , पिता शत्रुः ।
येन बालो न पाठितः ।। "
भक्ति और धर्म की शिक्षा न देने वाले माता पिता उस बालक के शत्रु ही हैँ ।
बालक का हृदय , मन बड़ा कोमल होता है . अतः उसे दिए गये संस्कार उसके मन मेँ अच्छी तरह जम जाते हैँ । उसे बचपन मेँ अच्छे संस्कार देने से उसका यौवन भ्रष्ट नहीँ होगा और जीवन भर वह संस्कारी बना रहेगा ।
चाचा उपनन्द श्रीकृष्ण को वृन्दावन ले गये ।
जिसे ज्ञानवृद्ध संत का सहारा हो , वह पतन के गर्त मेँ गिर नहीँ सकता किसका हाथ पकड़कर चलने से गिरने का डर नहीँ रहता , ईश्वर के नामोँ का आश्रय लेकर चलना चाहिए । वृन्दावन मेँ अकेले नहीँ बल्कि वृन्द "समूह "मे जाना चाहिए , अर्थात् औरोँ को भी सत्कार्य की प्रेरणा देना चाहिए 

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