Saturday 28 June 2014

तब नारायणजी धर्म की रक्षा करने के लिए


परलोक का सोच न करेंगे !
चोर व डाकू बहुत उत्पन्न होकर सबको दुःख देंगे ! राजा लोग चोर व डाकू से मेल करके प्रजा का धन चुरवा लेंगे ! दश वर्ष की कन्या बालक जानेगी और कुलीन स्त्रियाँ दूसरे पुरुष की चाह रखेंगी ! अपना कुटुम्ब पालनेवाले को सब लोग अच्छा जानेंगे ! केवल अपना पेट भरने से सब छोटे-बड़े प्रसन्न रहेंगे ! बहुत लोग अन्न व वस्त्र का दुःख उठावेंगे !
वृक्ष छोटे होंगे ! औषधों में गुण नहीं रहेगा ! शुद्र के समान चारों वर्णों का धर्म होगा ! राजा लोग थोड़ी सी सामर्थ्य रखने पर सब पृथ्वी लेने की इच्छा रखेंगे ! गृहस्थ लोग माता-पिता को छोड़कर ससुर , साले और स्त्री की आज्ञा में रहेंगे ! निकट के तीर्थो पर विश्वास न रखकर दूर के तीर्थों में जावेंगे , पर तीर्थ में नहाने और दर्शन करने से जो फल मिलता है उस पर उनको निश्चय न होगा !
होम और यज्ञ आदि संसार में कम होंगे ! गृहस्थ लोग दो-चार ब्राह्मण खिला देने को ही बड़ा धर्म समझेंगे ! सब लोग धर्म व दया छोड़कर ऐसे सूम हो जावेंगे कि उनसे अतिथि को भी भोजन व वस्त्र नहीं दिया जाएगा ! सन्यासी लोग अपना धर्म-कर्म छोड़कर गेरुआ वस्त्र पहिनने से दंडी मालूम होंगे !

इतनी कथा सुनाकर शुकदेवजी ने कहा - हे परीक्षित ! जब कलियुग के अंत में इसी तरह घोर पाप होगा तब नारायणजी धर्म की रक्षा करने के लिए सम्भल देश में ( आज का उत्तर भारतीय क्षेत्र ) गौढ़ ब्राह्मण के घर कल्कि अवतार लेंगे !
यह उनका २४वा अवतार कहलायेगा ( गयात्री की चौबीस शक्तियों सहित ) 
नीले घोड़े  पर चढ़कर ( लेखनी द्वारा युग साहित्य सृजन करके )
हजारों राजाओं , अधर्मियों और पापियों को ( भ्रष्ट चिंतन व भ्रष्ट आचरण करने वाले मनुष्यों को )
खड्ग से ( विवेकशील व श्रेष्ठ विचारों द्वारा )  मार डालेंगे ( अर्थात दृष्टिकोण परिवर्तन ) !
जब उनके दर्शन ( जीवन दर्शन ) मिलने से बचे हुए मनुष्यों को ज्ञान प्राप्त हो जावेगा तब वे लोग पाप करना छोड़कर अपने धर्म से चलेंगे 
उसके उपरान्त सतयुग होगा  सब छोटे-बड़े अपना धर्म-कर्म करेंगे !

हे राजन ! इसी तरह ब्राह्मण क्षत्रिय , वेश्य , शूद्र चारों वर्णों का वंश बराबर चला आता है ! सतयुग के आदि में राजा देवापि चन्द्रवंशी जो बद्रिकाश्रम में और राजा मरू सूर्यवंशी जो मन्दराचल पहाड़ पर ( हिमालय की गोद ) बैठे हुए तप कर रहे हैं , सूर्यवंशी कुल को उत्पन्न करेंगे ! सतयुग के प्रवेश करने से कलियुग का धर्म जाता रहेगा !
देखो , इतने बड़े-बड़े राजा पृथ्वी पर होकर मिट्टी में मिल गये , भलाई-बुराई के सिवा कुछ उनके साथ नहीं गया ! यह शरीर मरने के उपरान्त कुछ काम न आवेगा ! इसको यूँ ही छोड़ देने से कौवे व कुत्ते खा जाते हैं ! कीड़े पड़ने व दुर्गन्ध आने से कोई उसके पास खड़ा नहीं होता ! जला देने से राख हो जाता है ! जो लोग नाश होनेवाले शरीर को पुष्ट करने के लिए जीवहिंसा करते हैं उनको बड़ा मुर्ख समझना चाहिए !
बड़े-बड़े प्रतापी राजाओं का नाश हो गया , केवल उनका यश-अपयश रह गया ! यह शरीर लाखों यत्न करने पर भी किसी तरह स्थिर नहीं रहता , इसलिए मनुष्य को उचित है कि अपने शरीर से अधिक प्रीती व अहंकार छोड़कर हरिचरणों ( शुभ संकल्प व सत्कर्मों ) में ध्यान लगावे और परमेश्वर का भजन व स्मरण ( श्रेष्ठ चिंतन व मनन ) करके भवसागर पार उतर जावे ! मनुष्यतनु पाने का यही फल है ! नहीं तो पीछे बहुत पछ्तावेगा !
हे परीक्षित ! तुम बड़े भाग्यवान हो जो अंत समय परमेश्वर की कथा व लीला सुनने में तुम्हारा मन लगा है !!

No comments:

Post a Comment