Saturday 28 June 2014

तब तक प्रभु की यात्रा नहीं हो सकती

सत न गति है, न ठहराव है। वह स्थिर है। वह स्वभाव है। सत-रज-तम तीन गुण प्रधान आप हैं। यही है विष्णु, ब्रह्मा, महेश -न्यूट्रान, इलेक्ट्रान, प्रोटॉन। यदि रज बिल्कुल शून्य हो जाए तो आप सत में ठहर जाएंगे। बेहोश हो जाएंगे। रज सुषुप्ति है। रज और तम उस स्थिति में आ जाएं कि एक दूसरे को संतुलित कर दें, तब उसी शून्य में सत का जन्म होता है। यही स्थिति समाधि की है। मन के रूपांतरण की है।
हमें अपने जीवन में मन को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं होती। यह हठयोग तो जबर्दस्ती लाद दिया गया है। असल में जरूरत होती है मन को रूपांतरित करने की। साधना और समाधि द्वारा हम उसी अवस्था को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
Photo: मन का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। आत्मा चैतन्य है। शरीर पदार्थ है। जैसे ही दोनों का संबंध होता है, मन पैदा हो जाता है। मन का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। जिसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता, वह चालाकी और धूर्तता से लोगों को मूर्ख बना कर राज करता है। पांच तत्व, पचीस प्रकृतियां, पांच ज्ञानेंद्रियां ,पांच कर्मेंद्रियां मिलाकर चालीस होती हैं। ये चालीस शेर हैं। किसी जंगल का राजा एक ही शेर होता है। यहां चालीस हैं। इन चालीस शेरों पर मन का नियंत्रण चलता है। वह भला शक्तिशाली कैसे नहीं होगा? इतनी शक्ति वाले इस मन का संबंध भी एकतरफा है। दोतरफा संबंध तोड़ने में सदैव कठिनाई होती है। एकतरफा संबंध तोड़ने में एकतरफा निर्णय ही काफी है। मन एक तरफा संबंध है -चेतना से शरीर की तरफ। शरीर से चेतना की तरफ नहीं। इसकी सारी धारा चेतना से शरीर की तरफ है। चेतना जब पदार्थ की तरफ चलती है तब राग है। पदार्थ से स्वयं की तरफ लौटती है तो वैराग्य है। इस वैराग्य का अभ्यास जरूरी है। जैसे आप गाड़ी चलाते हैं, तब एक पैर अक्सेलरेटर पर रहता है। दूसरा ब्रेक पर नहीं रहता। यदि हम अक्सेलरेटर और ब्रेक एक साथ दबा दें, तो गाड़ी उलट सकती है। ऐक्सिडेंट कर सकती है। यही कारण है कि गाड़ी चालक सिखाता है कि एक ही पैर का उपयोग करें, दूसरे को रहने दें। जिससे अक्सेलरेटर दबाते हैं, गाड़ी रोकते वक्त वही पैर उठकर ब्रेक पर आता है। अक्सेलरेटर छूट जाता है। इससे तेल जाना बंद हो जाता है और ब्रेक लग जाता है। हाथ से गियर भी बदल जाता है। तीनों काम एक साथ होते हैं। अब मन पर ध्यान दें। जब मन दौड़ता है, तब आप उसके साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। जितना तादात्म्य स्थापित करेंगे, मन उसी गति से दौड़ता है। यही तादात्म्य अक्सेलरेटर है। यहीं से मन रूपी इंजन को ईंधन मिलता है। यदि आपका मन क्रोध करने को कहता है और आप दूर खड़े रहे, तो मन दौड़ेगा नहीं। जैसे कार स्टार्ट कर दें और अक्सेलरेटर न दबाएं तो वह भड़-भड़ कर के रुक जाएगी। यदि मन वासना के साथ है और आप उसके साथ लग जाएं, रस लेने लगें, ख्याली पुलाव पकाने लगें। तो यही अक्सेलरेटर पर पैर पड़ना है। मन तेज गति से भागेगा। आपको वासना के लिए प्रेरित करेगा। आपका कण-कण वासनामय हो जाएगा। मन से तादात्म्य हटा लें। सोचें, नहीं मैं वासना नहीं हूं। मन से असहयोग हो गया। इससे मन की गति टूट जाती है। सहयोग ही मन का ईंधन है। असहयोग ही ब्रेक है। कृष्ण कहते हैं, इसे साक्षी होकर देखते रहो। इस मन को जब तक आप संयम में नहीं लाते, तब तक प्रभु की यात्रा नहीं हो सकती। मन रूपी गाड़ी में पेट्रोल का काम रज करता है। तम जो भी अवरोध उत्पन्न करे, यदि मन को रोकने वाला न हो, तो आप सदैव गति करते रह जाएंगे। तम रोकता है। यह ऋणात्मक है, रज धनात्मक ऊर्जा है। रज मन को गति देता है। तम अवरोध उत्पन्न करता है। सत न गति है, न ठहराव है। वह स्थिर है। वह स्वभाव है। सत-रज-तम तीन गुण प्रधान आप हैं। यही है विष्णु, ब्रह्मा, महेश -न्यूट्रान, इलेक्ट्रान, प्रोटॉन। यदि रज बिल्कुल शून्य हो जाए तो आप सत में ठहर जाएंगे। बेहोश हो जाएंगे। रज सुषुप्ति है। रज और तम उस स्थिति में आ जाएं कि एक दूसरे को संतुलित कर दें, तब उसी शून्य में सत का जन्म होता है। यही स्थिति समाधि की है। मन के रूपांतरण की है। हमें अपने जीवन में मन को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं होती। यह हठयोग तो जबर्दस्ती लाद दिया गया है। असल में जरूरत होती है मन को रूपांतरित करने की। साधना और समाधि द्वारा हम उसी अवस्था को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

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