Wednesday 18 June 2014

सुखदाई

भज मन राम चरण सुखदाई ॥

जिन चरनन से निकलीं 
सुरसरि शंकर जटा समायी ।
जटा शन्करी नाम पड़्यो है 
त्रिभुवन तारन आयी ॥

शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक 
शेष सहस मुख गायी ।
तुलसीदास मारुतसुत की 
प्रभु निज मुख करत बढ़ाई ॥

सुरज मंगल सोम भृगु सुत 
बुध और गुरु वरदायक तेरो ।
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग 
शनीचर होत हुचेरो ॥

दुष्ट दु:शासन विमल 
द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो ।
ताकी सहाय करी करुणानिधि 
बढ़ गये चीर के भार घनेरो ॥

जाकी सहाय करी करुणानिधि 
ताके जगत में भाग बढ़े रो ।
रघुवंशी संतन सुखदायी 
तुलसीदास चरनन को चेरो ॥

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