Sunday 29 June 2014

यही ज्ञान और अज्ञान है

ज्ञानी वही है । जो झूठ पाप अनाचार दुष्टता कपट आदि दुर्गुणों से युक्त दुष्ट बुद्धि को नष्ट कर दे । और काल निरंजन रूपी मन को पहचान कर उसे भुला दे । उसके कहने में न आये । जो ज्ञानी होकर कटु वाणी बोलता है । वह ज्ञानी अज्ञान ही बताता है । उसे अज्ञानी ही समझना चाहिये ।
जो मनुष्य शूरवीर की तरह धोती खोंसकर मैदान में लङने के लिये तैयार होता है । और युद्ध भूमि में आमने सामने जाकर मरता है । तब उसका बहुत यश होता है । और वह सच्चा वीर कहलाता है । इसी प्रकार जीवन में अज्ञान से उत्पन्न समस्त पाप दुर्गुण और बुराईयों को परास्त करके जो ज्ञान बिज्ञान उत्पन्न होता है । उसी को ज्ञान कहते हैं ।
मूर्ख अज्ञानी के ह्रदय में शुभ सतकर्म नहीं सूझता । और वह सदगुरु का सार शब्द और सदगुरु के महत्व को नहीं समझता । मूर्ख इंसान से अधिकतर कोई कुछ कहता नहीं है । यदि किसी नेत्रहीन का पैर यदि विष्ठा ( मल ) पर पङ जाये । तो उसकी हँसी कोई नहीं करता । लेकिन यदि आँख होते हुये भी किसी का पैर विष्ठा से सन जाये । तो सभी लोग उसको ही दोष देते हैं ।
हे धर्मदास ! यही ज्ञान और अज्ञान है । ज्ञान और अज्ञान विपरीत स्वभाव वाले ही होते हैं । अतः ज्ञानी पुरुष हमेशा सदगुरु का ध्यान करे । और सदगुरु के सत्य शब्द ( नाम या महामंत्र ) को समझे । सबके अन्दर सदगुरु का वास है । पर वह कहीं गुप्त तो कहीं प्रकट है । इसलिये सबको अपना मानकर जैसा मैं अविनाशी आत्मा हूँ । वैसे ही सभी जीवात्माओं को समझे । और ऐसा समझकर समान भाव से सबसे नमन करे । और ऐसी गुरु भक्ति की निशानी लेकर रहे ।
रंग कच्चा होने के कारण । इस देह को कभी भी नाशवान होने वाली जानकर भक्त प्रहलाद की तरह अपने सत्य संकल्प में दृण मजबूत होकर रहे । यधपि उसके पिता हिरण्यकश्यप ने उसको बहुत कष्ट दिये । लेकिन फ़िर भी प्रहलाद ने अडिग होकर हरि गुण वाली प्रभु भक्ति को ही स्वीकार किया । ऐसी ही प्रहलाद कैसी पक्की भक्ति करता हुआ । सदगुरु से लगन लगाये रहे । और 84 में डालने वाली मोह माया को त्याग कर भक्ति साधना करे । तब वह अनमोल हुआ हँस जीव अमरलोक सत्यलोक में निवास पाता है । और अटल होकर स्थिर होकर जन्म मरण के आवागमन से मुक्त हो जाता है ।

No comments:

Post a Comment