Sunday 29 June 2014

भगवान अंतर्धयान हो गए।

शिव अनादि हैं, अनन्त हैं, विश्वविधाता हैं| सारे संसार में एक मात्र
शिव ही हैं जो जन्म, मृत्यू एवं काल के बंधनो से
अलिप्त स्वयं महा
काल हैं| शिव सृष्टी के मूल कारण हैं, फिर
भी स्वयं अकर्ता हैं, तटस्थ हैं|
सृष्टी से पहले कुछ नहीं था – न
धरती न अम्बर, न अग्नी न वायू, न
सूर्य न ही प्रकाश, न जीव न
ही देव। था तो केवल सर्वव्यपी अंधकार
और महादेव शिव। तब शिव ने
सृष्टी की परिकल्पना की ।
सृष्टी की दो आवश्यकतायँ
थीं – संचालन हेतु शक्ति एवं व्यवस्थापक । शिव ने
स्वंय से अपनी शक्ति को पृथक किया तथा शिव एवं
शक्ति ने व्यवस्था हेतु एक कर्ता पुरूष का सृजन किया जो विष्णु
कहलाय। भगवान विष्णु के नाभि से
ब्रह्मा की उतपत्ति हुई। विष्णु भगवान ने ब्रह्मदेव
को निर्माण कार्य सौंप कर स्वयं सुपालन का कार्य वहन किया।
फिर स्वयं शिव जी के अंशावतार रूद्र ने
सृष्टी के विलय के कार्य का वहन किया। इस प्रकार
सृजन, सुपालन तथा विलय के चक्र के संपादन हेतु
त्रिदेवों की उतपत्ति हुई। इसके उपरांत शिव
जी ने संसार की आयू निरधारित
की जिसे एक कल्प कहा गया। कल्प समय
का सबसे बड़ा माप है। एक कल्प के उपरातं महादेव शिव संपूर्ण
सृष्टी का विलय कर देते हैं तथा पुन: नवनिर्माण
आरंभ करते हैं जिसकी शुरुआत त्रिदेवों के गठन से
होती है| इस प्रकार शिव को छोड शेष
सभी काल के बंधन में बंधे होते हैं|
इन परमात्मा शिव का अपना कोई स्वरूप नहीं है,
तथा हर स्वरूप इन्हीं का स्वरूप है। शिवलिंग
इन्ही निराकार परमात्मा का परीचायक है
तथा परम शब्द ॐ
इन्हीं की वाणी। 
सृष्टी के निर्माण के हेतु शिव ने
अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं
पुरूष लिंग के द्योतक हैं
तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग
की द्योतक| पुरुष (शिव) एवं
स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर
भी हैं और नारी भी, अतः वे
अर्धनरनारीश्वर हैं|
जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने
पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत
नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन
करना होगा। गहन विचार के उपरांत
भी वो किसी भी निर्णय पर
नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के
हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव
को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया।
ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए।
ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर
स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा।
अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल
प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदा

की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं
स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश
दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान
हो गए।
शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के
द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक
दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के
बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प
सिद्धी करती हैं। तो फिर क्या हैं शिव
और शक्ति?
शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था।
शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।
शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।
शिव सागर के जल सामन हैं। शक्ति सागर की लहर

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