Saturday 28 June 2014

पूछने से उनकी जाति मालूम होगी

धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश करने हेतु कल्कि अवतार का प्राकट्य ...

राजा परीक्षित ने इतनी कथा सुनकर विनय किया - हे मुनिनाथ ! आपने कहा कि जिस दिन श्रीकृष्णजी वैकुण्ठ को गये उसी दिन सत्य व धर्म संसार से उठ गया , क्या उनके पीछे कोई ऐसा धर्मात्मा राजा नहीं हुआ जो धर्म को स्थिर रखता ? अब यह बतलाइए कि फिर किसके वंश में राजगद्दी रही थी !
शुकदेवजी ने कहा - हे परीक्षित ! श्यामसुन्दर के रहने तक द्वापरयुग था , उनके पीछे कलियुग में जो राजा हुए उन्होंने सत्य व धर्म को छोड़ दिया ! थोड़ी आयु रहने से कुछ शुभ कर्म भी नहीं कर सकते थे ! जब श्रीकृष्णजी महाराज वैकुण्ठधाम को गये तब पांडवों के वंश में तुम चक्रवर्ती राजा हुए और तुम्हारे उपरान्त ब्रजनाभ व जन्मेजय च्रक्रवर्ती राजा होंगें ...
जरासन्ध का बेटा जो सहदेव था , उसके वंश में पुरुजित नाम का राजा होगा ! उसे चाणक मंत्री मारकर अपने पुत्र प्रदवेत को राज्य देगा ! उसके वंश में तीनसों अड़तीस वर्ष तक राजगद्दी रहेगी ! फिर शिशुनाग नाम राजा होगा ! उसके कुल में काकौरन व क्षेमधर्मा आदि उत्पन्न होकर तीनसों साठ वर्ष राज्य करेंगे ! फिर महानन्दी राजा के बिन्द नाम का बेटा शुद्री से उत्पन्न होकर बरजोरी सब क्षत्रियों का धर्म नष्ट करेगा ! उसके डर से सब कुलीन क्षत्रीय भागकर पंजाब में जा बसेंगे ! पर्वत पर रहनेवाले क्षत्रिय शुद्रधर्म रखेंगे ! राजा बिन्द के आठ बेटे राज्य करेंगे ! उन आठों को चंद्रगुप्त नामक दास मारकर आप राजगद्दी पर बैठ जाएगा ! उसके वंश में वारीचारी व देवहूति आदि उत्पन्न होकर हजार वर्ष तक राजा रहेंगे ...
फिर देवहूति का मंत्री कणव अपने राजा को स्त्री के विषय में फँसे रहने से मारकर आप राज्य करेगा ! उसी कुल में वसुदेव , बहुमित्र और नारायण आदि उत्पन्न होंगे ! उनके वंश में तीनसों पैंतालीस वर्ष तक राज्य रहेगा ! फिर कनल नामक शुद्र नारायण राजा को मारकर आप राजगद्दी पर बैठ जाएगा ! उसके वंश में कृष्ण व पूर्णमास आदिक उत्पन्न होकर तीस पीढ़ी साढ़े आठसौ वर्ष तक राज्य करेंगे ...
फिर उभरती शहर के रहनेवाले सात अहीर राजा होंगे ! उन्हें मारने के उपरान्त कावों का राज्य होगा ! उनके पीछे चौदह पीढ़ी तक मुसलमान राजा होकर बादशाह कहलावेंगे ! एक हजार निन्नानवे वर्ष तक उनका राज्य रहेगा ! मुसलमानों को जीतकर दश पीढ़ी गोरंड (अंग्रेज) राज्य करेंगे ! उनके पीछे ग्यारह पीढ़ी निन्नानवे वर्ष तक मौन (प्रजातंत्र) का राज्य होगा !
इतने लोग कलियुग में नामी राजा होकर फिर अहीर , शुद्र और मलेच्छ राजा होंगे ! कलियुग में राजा अपना कर्म व धर्म छोड़कर स्त्री , बालक व गौ का वध करेंगे ! दूसरे का धन , स्त्री , व पृथ्वी बरजोरी छीनकर काम , क्रोध , लोभ अधिक रखेंगे ! उनकी दशा देखकर प्रजा लोग अपने कर्म व धर्म से न रहकर बहुत पाप करेंगे ...

शुकदेवजी ने कहा - हे परीक्षित ! कलियुग में संसारी मनुष्य दया व सच्चाई छोड़ देने से सामर्थ्यहीन हो जावेंगे और आयु थोड़ी होने में कुछ शुभ कर्म उनसे नहीं बन पड़ेगा ! राजा लोग प्रजा को दुःख देकर अन्न का चारों भाग ले लेंगे ! वर्षा थोड़ी होगी , अन्न कम उत्पन्न होगा ! महँगी पड़ने से सब मनुष्य खाने के बिना दुःख पाकर अपने-अपने वर्ण व आश्रम का धर्म छोड़ देंगे !
कलियुग में मनुष्यों की आयु एकसौ बीस वर्ष की लिखी है , पर अधर्म करने से पूरी आयु न भोगकर उसके भीतर मर जावेंगे ! कलियुग के अंत में बहुत पाप करने के कारण बीस-बाईस वर्ष से अधिक कोई नहीं जीवेगा ! ऐसा चक्रवर्ती व प्रतापी राजा भी कोई नहीं रहेगा जिसकी आज्ञा सातों द्वीपों के राजा पालन करें ! जिनके पास थोड़ासा भी राज्य व देश होगा वे अपने को बड़ा प्रतापी समझेंगे ! 
थोड़ी आयु होने पर भी पृथ्वी व धन लेने के लिए आपस में झगड़ा करेंगे और अपना धर्म व न्याय छोड़कर जो मनुष्य उनको द्रिव्य देगा उसका पक्ष करेंगे ! पाप पुण्य का विचार न रक्खेंगे ! चोरी व कुकर्म करने और झूठ बोलने में अपनी अवस्था बीताकर दमड़ी की कौड़ी के लिए मित्र से शत्रु हो जावेंगे !
गायों के दूध बकरी के समान थोड़ा होगा ! ब्राह्मणों में कोई ऐसा लक्षण नहीं रहेगा जिसे देखकर मनुष्य पहिचान सके कि यह ब्राहम्ण है ! पूछने से उनकी जाति मालूम होगी ! धनपात्र की सेवा सब लोग करेंगे , उत्तम-मध्यम वर्ण का कुछ विचार नहीं रहेगा ! व्यापार में छल अधिक होगा ! स्त्री-पुरुष का चित्त मिलने से ऊँच-नीच जाति आपस में भोग-विलास करेंगे ! ब्राह्मण लोग अपना धर्म-कर्म छोड़कर जनेऊ पहिनने से ब्राह्मण कहलावेंगे !
ब्रह्मचारी व वानप्रस्थ जटा सिर पर बढ़ाकर अपने आश्रम के विचार छोड़ देंगे ! उत्तम वर्ण कंगाल से धनपात्र मध्यम वर्ण को अच्छा समझेंगे ! झूठी बात बनानेवाला मुर्ख मनुष्य सच्चा व ज्ञानी कहलावेगा !
तीनों वर्णों के मनुष्य जप , तप , संध्या व तर्पण करना छोड़कर नहाने के उपरान्त भोजन कर लेंगे ! केवल स्नान करना बड़ा आचार समझेंगे और ऐसी बात करेंगे कि जिससे संसार में यश हो ! अपनी सुन्दरता के लिए शिर पर बाल रखेंगे ! परलोक का सोच न करेंगे !
चोर व डाकू बहुत उत्पन्न होकर सबको दुःख देंगे ! राजा लोग चोर व डाकू से मेल करके प्रजा का धन चुरवा लेंगे ! दश वर्ष की कन्या बालक जानेगी और कुलीन स्त्रियाँ दूसरे पुरुष की चाह रखेंगी ! अपना कुटुम्ब पालनेवाले को सब लोग अच्छा जानेंगे ! केवल अपना पेट भरने से सब छोटे-बड़े प्रसन्न रहेंगे ! बहुत लोग अन्न व वस्त्र का दुःख उठावेंगे !
वृक्ष छोटे होंगे ! औषधों में गुण नहीं रहेगा ! शुद्र के समान चारों वर्णों का धर्म होगा ! राजा लोग थोड़ी सी सामर्थ्य रखने पर सब पृथ्वी लेने की इच्छा रखेंगे ! गृहस्थ लोग माता-पिता को छोड़कर ससुर , साले और स्त्री की आज्ञा में रहेंगे ! निकट के तीर्थो पर विश्वास न रखकर दूर के तीर्थों में जावेंगे , पर तीर्थ में नहाने और दर्शन करने से जो फल मिलता है उस पर उनको निश्चय न होगा !
होम और यज्ञ आदि संसार में कम होंगे ! गृहस्थ लोग दो-चार ब्राह्मण खिला देने को ही बड़ा धर्म समझेंगे ! सब लोग धर्म व दया छोड़कर ऐसे सूम हो जावेंगे कि उनसे अतिथि को भी भोजन व वस्त्र नहीं दिया जाएगा ! सन्यासी लोग अपना धर्म-कर्म छोड़कर गेरुआ वस्त्र पहिनने से दंडी मालूम होंगे !

इतनी कथा सुनाकर शुकदेवजी ने कहा - हे परीक्षित ! जब कलियुग के अंत में इसी तरह घोर पाप होगा तब नारायणजी धर्म की रक्षा करने के लिए सम्भल देश में ( आज का उत्तर भारतीय क्षेत्र ) गौढ़ ब्राह्मण के घर कल्कि अवतार लेंगे !
यह उनका २४वा अवतार कहलायेगा ( गयात्री की चौबीस शक्तियों सहित ) 
नीले घोड़े पर चढ़कर ( लेखनी द्वारा युग साहित्य सृजन करके )
हजारों राजाओं , अधर्मियों और पापियों को ( भ्रष्ट चिंतन व भ्रष्ट आचरण करने वाले मनुष्यों को )
खड्ग से ( विवेकशील व श्रेष्ठ विचारों द्वारा ) मार डालेंगे ( अर्थात दृष्टिकोण परिवर्तन ) !
जब उनके दर्शन ( जीवन दर्शन ) मिलने से बचे हुए मनुष्यों को ज्ञान प्राप्त हो जावेगा तब वे लोग पाप करना छोड़कर अपने धर्म से चलेंगे ( २१ वीं सदी का संविधान हमारा युग निर्माण सत्संकल्प ) !
उसके उपरान्त सतयुग होगा ( २१ वीं सदी उज्जवल भविष्य ) , सब छोटे-बड़े अपना धर्म-कर्म करेंगे !

हे राजन ! इसी तरह ब्राह्मण क्षत्रिय , वेश्य , शूद्र चारों वर्णों का वंश बराबर चला आता है ! सतयुग के आदि में राजा देवापि चन्द्रवंशी जो बद्रिकाश्रम में और राजा मरू सूर्यवंशी जो मन्दराचल पहाड़ पर ( हिमालय की गोद ) बैठे हुए तप कर रहे हैं , सूर्यवंशी कुल को उत्पन्न करेंगे ! सतयुग के प्रवेश करने से कलियुग का धर्म जाता रहेगा !
देखो , इतने बड़े-बड़े राजा पृथ्वी पर होकर मिट्टी में मिल गये , भलाई-बुराई के सिवा कुछ उनके साथ नहीं गया ! यह शरीर मरने के उपरान्त कुछ काम न आवेगा ! इसको यूँ ही छोड़ देने से कौवे व कुत्ते खा जाते हैं ! कीड़े पड़ने व दुर्गन्ध आने से कोई उसके पास खड़ा नहीं होता ! जला देने से राख हो जाता है ! जो लोग नाश होनेवाले शरीर को पुष्ट करने के लिए जीवहिंसा करते हैं उनको बड़ा मुर्ख समझना चाहिए !
बड़े-बड़े प्रतापी राजाओं का नाश हो गया , केवल उनका यश-अपयश रह गया ! यह शरीर लाखों यत्न करने पर भी किसी तरह स्थिर नहीं रहता , इसलिए मनुष्य को उचित है कि अपने शरीर से अधिक प्रीती व अहंकार छोड़कर हरिचरणों ( शुभ संकल्प व सत्कर्मों ) में ध्यान लगावे और परमेश्वर का भजन व स्मरण ( श्रेष्ठ चिंतन व मनन ) करके भवसागर पार उतर जावे ! मनुष्यतनु पाने का यही फल है ! नहीं तो पीछे बहुत पछ्तावेगा !
हे परीक्षित ! तुम बड़े भाग्यवान हो जो अंत समय परमेश्वर की कथा व लीला सुनने में तुम्हारा मन लगा है !!

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