Saturday 28 June 2014

मेरा अपराध क्षमा कीजिए

जब भृगु ऋषीश्वर ने रजोगुणवश ब्रह्मा को अपने ऊपर क्रोधित देखा तब वहाँ से उठकर कैलास पर्वत पर , जहाँ गौरीशंकर विराजते थे , गए ! जैसे भोलानाथ ने अपने भाई भृगु ऋषीश्वर को आते देखा वैसे ही खड़े हो गए और हाथ पसार कर गले मिलना चाहा ! तब ऋषीश्वर ने महादेवजी से कहा कि
तुम अपना कर्म व धर्म छोड़कर श्मशान पर बैठे रहते हो , इसलिए मुझे मत छुओ !
यह अभिमानपूर्वक वचन सुनते ही जब गौरीपति ने क्रोध से त्रिशूल उठाकर भृगु ऋषीश्वर को मारना चाहा तब पार्वतीजी ने शिवजी से हाथ जोड़कर विनय किया -
महाराज ! यह ऋषीश्वर तुंहारा छोटा भाई है उसका अपराध क्षमा कीजिए !
पार्वती के कहने से भृगु ऋषीश्वर के प्राण बचे तब भोलानाथ को तमोगुणवश देखकर वहाँ से विष्णु भगवान की परीक्षा लेने के लिए वैकुण्ठ को गए ! वह वैकुण्ठ कैसा है कि जहाँ सूर्य व चन्द्रमा का प्रकाश दिन रात बराबर बना रहता है ! वहाँ सब पृथ्वी सोनहली व रत्नजटित है ! बारहों महीने तुलसी के वृक्ष सुगन्धित फूल व उत्तम-उत्तम फल लगे रहते हैं ! अच्छे-अच्छे तड़ाग व बावली आदि बने हैं ! उसके किनारे अनेक रंग के पक्षी बोलते हैं !
जब भृगु ऋषीश्वर ने बेधड़क बीच महल में , जहाँ वैकुण्ठनाथ जड़ाऊ पलंग पर सो रहे थे और लक्ष्मीजी उनका पैर दबाती थीं , घुसकर एक लात बाईं ओर छाती में मारी तब वैकुण्ठनाथ नींद से चौंककर ऋषीश्वर को देखते ही उनका पैर दबाने लगे और चरणों पर गिरकर विनयपूर्वक बोले -
हे द्विजराज ! मेरा अपराध क्षमा कीजिए ! मेरी छाती बड़ी कड़ी है , आपके कोमल चरण को अवश्य दुःख पहुँचा होगा ! मुझे तुम्हारे आने का समाचार मालूम होता तो आगे से पहुँचता ! आपने दया करके मेरा लोक पवित्र किया ! यह जो लात मारी है , इस चरण का चिन्ह सदा अपनी छाती पर बना रहने दूँगा ! इसमें मुझे कुछ लज्जा नहीं है !
जब भृगु ऋषीश्वर ने ऐसी क्षमा त्रिभुवनपति में देखकर मीठा वचन सुना तब लज्जित होकर उनकी स्तुति करने लगे ! लक्ष्मीजी ने लात मारते समय मन में क्रोध किया था , पर वैकुण्ठनाथ के डर से ऋषीश्वर को कुछ शाप नहीं दिया ! जब त्रिभुवनपति ने भृगु ऋषीश्वर का पूजन करके उन्हें विदा किया तब उन्होंने सरस्वती के किनारे जाकर तीनों देवताओं का हाल अपने साथियों से कह दिया ! यह समाचार पाते ही सब ऋषीश्वर नारायणजी का स्मरण व ध्यान सच्चे मन से करने लगे !! 

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