Wednesday 25 June 2014

इनको भी भूख-प्यास लगती है

भाव से ही भगवान की प्राप्ति होती है।एक व्यक्ति अपने जीवन की परेशानियों से तंग आकर वह एक संत की शरण में गया।संत ने उसे गणेश जी की उपासना करने को कहा।दो महीने तक उसने गणेश जी की खूब पूजा की, जब कोई लाभ नहीं हुआ तो दूसरे संत के पास गया।उन्होंने श्री रामजी की उपासना करने को कहा।फिर वह दो महीने तक खूब रामजी की पूजा की।जब उससे कोई लाभ नहीं हुआ तो तीसरे संत के पास गया।उन्होंने श्री कृष्ण जी की उपासना बताई।चौथे संत ने भगवान विष्णु की पूजा करने को कहा।पांचवें संत ने हनुमान जी पूजा करने को कहा।अनेक संतो के पास वह भटका, लेकिन उसे कोई लाभ नहीं हुआ।अंत में एक संत ने भोलेनाथ की पूजा करने को कहा।वह एक दिन भोलेनाथ का 
पूजन कर रहा था तभी उसके मन में विचार आया कि हमारे घर में बहुत से देवता जमा हो गए हैं मै जो भी भोलेनाथ को चढाता हूँ।वह भोलेनाथ तक पहुंचने से पहले ही घर में उपस्थित सभी देवता पहले ही भोग लगा लेते हैं।वह पूजन क्रम में धूप जला रहा था, उसने विचार किया कि मै यह धूप जो जला रहा हूँ इसकी सुगंध को
भोलेनाथ तक पहुंचने से पहले ही घर मे उपस्थित सभी देवता सूंघकर खत्म कर देते हैं।ऐसा विचार कर वह उठा और रूई उठाकर ले आया और सभी देवताओं की नाक के छिद्र में रूई को चढाना शुरू किया।जब वह गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष पहुंचा।देखा इनकी नाक बहुत बडी हैं।ढेर सारी रूई लेकर उनकी नाक में चढाने लगा और सोचने लगा कि ई गणेशवे सबसे ज्यादा गंध ग्रहण कर लेता है। इसकी नाक में बढिया से रूई चढाओ तभी वहां पर गणेश जी का प्राकट्य हो गया।गणेश जी ने कहा पुत्र वरदान मांगो।उस व्यक्ति ने उनसे कहा प्रभु आपकी जब पूजा उपासना की तब आप प्रसन्न नहीं हुए और आज जब मै आपके नाक मे रूई चढा रहा हूँ तो आप प्रसन्न हो गए।अगर मै जानता तो यह कार्य पहले ही कर देता।गणेशजी ने कहा पुत्र मै तुम्हारे नाक में रूई चढाने से प्रसन्न नहीं हुआ।मै तो इस कारण से प्रसन्न हुआ कि आज तुम्हारे हृदय में यह विश्वास जागृत हुआ कि मूर्ति में भी प्राण है।इनको भी भूख-प्यास लगती है। यह भी श्वांस लेते हैं, गंध का अनुभव करते हैं।इन्हे भी ठंड, गरमी और वर्षा का अनुभव होता है।इस कारण से मै प्रसन्न हुआ।कहगे का तात्पर्य कि विशवास और श्रध्दा से ही भगवान की प्राप्ति होती है।

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