Sunday 25 May 2014

तूँ अपने मन में गम्भीरता से विचार कर

तुमने यह मनुष्य शरीर पा लिया है । तुम्हारे लिये सत्कर्म करने का एक शुभ अवसर सम्मुख उपस्थित है ! क्यौंकि ऐसी मानवदेह बार बार कब और किस को मिला करती है !' अरे ! पागल ! तूँ भूल रहा है । इस बार बुद्धिमान् बन कर भी क्यों पुनः वैसा ही प्रमाद कर रहा है । यह अपना अमूल्य रत्न(मनुष्यदेह) क्यों किसी को ठगाने जा रहा है ! तूँ अपने मन में गम्भीरता से विचार कर, इन(कामक्रोध आदि) ठगों का संग त्याग दे । इन ठगों के क्रियाकलाप को देखकर अपने चित्त को चंचल न कर ।  तूँ अब भी सावधान हो जा, और प्रभु का भजन करता हुआ उस प्रभु में लीन हो जा 

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