Friday 30 May 2014

जिधर भी देखते हैं हम

तुम्हारे नाम लिखने को तराने अब नहीं आते,
मेरी गजलों में चाहत के फसाने अब नहीं आते,
जिधर भी देखते हैं हम उदासी ही उदासी है,
खुशी से मुस्कुराने के बहाने अब नहीं आते,
मेरी नादानियाँ तो आज भी वैसी की वैसी हैं,
मगर तुम पहले की तरह सताने अब नही आते,
की जिस चाहत से हमने रेत पे एक घर बनाया था,
हवा का जोर काफी है बचाने तुम नही आते,
तुम्हारे बाद ही लिखा है मैने ये सभी नगमें,
बडे बेजान लगते हैं सुनाने तुम नही आते,
सम्भाला है आज भी मैने इस नफरत की दुनियाँ में,
कि जो रिश्ता बनाकर तुम निभाने अब नही आते,

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