Friday 30 May 2014

उपकार को न मानने वाले संसारीजन

एक जंगल में कुआँ था । उसमें काला सर्प गिर गया और एक बन्दर दूसरे बन्दरों से डरकर वह भी कुएँ में गिर गया । एक शेऱ एक रोज जंगल में घूमता हुआ, उस कुएँ के पास आया, तो उसने ज्योंहि जल में झांका उसको अपना प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ा । उसने जाना, इसमें दूसरा शेर और है, तो लड़ने को उसने आवाज लगाई । अन्दर से उसी की वापिस आवाज सुनाई पड़ी । उसने देखा कि अन्दर वाला शेर बोल रहा है । वह अन्दर कूद गया । एक जाति का सुनार मार्ग में जा रहा था । कुआँ देखकर पानी पीने की इच्छा से कुएँ पर आया । पानी निकालने लगा । पांव फिसल गया और कुएँ में गिर गया ।
कोई सगुरा गुरुमुखी भी कुआँ देखकर पानी पीने की इच्छा से आया । कुएँ के अन्दर झांका तो चार जीव कुएँ के बीच में पड़े दिखाई दिये । चारों ने उसको अपनी - अपनी बात कह दी और बोले ~ हमारी जान बचा । पहले उसने शेर को निकाला । शेर बोला ~ अगर मैं तुझे खा जाऊं तो तूँ क्या करे ? सगुरा बोला ~ मैंने तो अपना कर्त्तव्य पालन किया है, तेरे समझ में आये, वह तूँ कर । शेर बोला ~ ‘‘नहीं, तूँ मेरा सच्चा मित्र है, तेरे में कोई कष्ट पड़े, तो अमुक पहाड़ में आ जाना । परन्तु ये तीनों ही खतरनाक हैं, इनको नहीं निकालना । जिसमें यह सुनार तो बहुत खतरनाक है, इसको तो कभी निकालना ही नहीं ।’’ यह कहकर शेर चला गया । फिर बन्दर के प्रार्थना करने पर उसे भी निकाला और वह बोला ~ ‘‘तूँ मेरा सच्चा मित्र है, कभी कष्ट पड़े, तो मुझको याद कर लेना । पर सुनार को मत निकालना ।’’ यह बोल कर बन्दर भी चला गया । काले सर्प की प्रार्थना सुनकर उसे भी निकाला । सर्प ने कहा ~ ‘‘तूँ मेरा सच्चा मित्र है, कभी कष्ट पड़े, तो मुझको याद कर लेना, परन्तु सुनार को मत निकालना ।’’ सुनार कहने लगा - भाई ! मुझे भी निकाल । सगुरा बोला ~ भाई ! तेरे लिये तो तीनों ही मना कर गये हैं । सुनार बोला - ‘‘भाई ! मनुष्य से मनुष्य तो मिलते ही रहते हैं, कुएँ से कुआँ नहीं मिलता । तूँ मेरी जान बचावेगा तो कभी मैं भी तेरी मदद करूंगा ।’’ सगुरा ने उसको भी निकाला । वह सुनार बोला ~ ‘‘कभी कोई काम हो तो मेरे पास अमुक जगह आ जाना ।’’ यह कहकर सुनार चला गया ।
एक समय वह गुरुमुखी शेर के पास पहुँचा । शेरनी घुर्राने लगी । शेर ने आँख खोल कर देखा, तो मित्र दिखाई पड़ा । झट बाहर आकर मिला । बोला ~ ‘‘मित्र कैसे आया ?’’ गुरुमुखी ने अपनी बात कह दी । शेर एक रोज पहले वहॉं के राजकुमार को मारकर अपनी गुफा में ले गया था । राजकुमार के बदन पर सोने के हीरे जवाहरातों से जड़े हुए जेवर थे । शेर ने कहा मित्र को ‘‘गुफा में से सब जेवर उठा ला ।’’ जब जेवर ले आया, तो मित्र को देकर शेर ने विदा कर दिया । उसने घर लाकर अपनी स्त्री के पास रख दिया । हाथ के कड़े की जोड़ी लेकर उसी सुनार के पास गया और बोला ~ ‘‘मित्र, इसको बिकवा दे ।’’ सुनार ने कड़े लेकर विचार किया कि राजा के पुत्र को इसने ही मारा है । पुलिस मैं जाकर कड़े दे दिये । पुलिस ने आकर उसको गिरफ्तार कर लिया । राजा ने कड़े देखे और हुक्म दे दिया कि उसे तोप से बांधकर उड़ा दो । जब उसे तोप से बांधने ले चले, तब इसने सर्प को याद किया । सर्प प्रकट हो गया और एक बूंटी का टुकड़ा देकर बोला कि मैं जाकर राजा को डसता हूँ, तुम यह बूँटी घोटकर पिला देना । इधर उसको तोप के लटकाया । तब इसने बन्दर को याद किया । बन्दर आ गया । जब तोप चलाने वाले बत्ती जलाकर तोप के लगाने लगे, तब बन्दर हाथ से खोस कर, बुझा कर फेंक दी । इस तरह बार - बार करने लगा । उधर सांप ने राजा को डस लिया । नगर में रोना - पीटना मच गया । तोप चलाने वालों ने यह बात सुनी और बोले ~ दुष्ट ! तूँ किस सौंण का आया है, हमारे तो राजा को सर्प ने डस लिया । वह बोला ~ ‘‘सर्प की दवा तो मैं जानता हूँ ।’’ उसको दरबार में ले गये । इसने बूंटी को घोटकर राजा को पिलाई । राजा का जहर उतर गया । राजा ने पूछा ~ ‘‘मुझे किसने जिलाया ?’’ लोगों ने कहा ~ जिस डाकू ने आपके पुत्र को मारा है, उसी डाकू ने आपको जिलाया है । राजा बोले ~ ‘‘इसने हमारे पुत्र को नहीं मारा ।’’ राजा ने उससे सब बात पूछी । उसने उपरोक्त कथा सब राजा को सुना दी । राजा ने उसको गुरुमुखी और सच्चा जानकर उसका सम्मान किया और सुनार को तोप से बांध कर उड़वा दिया ।
                                                                                    अकृतज्ञ अर्थात् उपकार को न मानने वाले संसारीजन वासना रूप दुःखों के इस संसार रूपी कुएँ में पड़े हैं । किन्तु उपकार करने वाले मुक्त - पुरुष, अपने सत्य उपदेशों से इस वासनारूप संसार - कूप से सर्प रूप जीवों को निकालते हैं । परन्तु वे निगुरे उन्हीं को डस कर दुःख पहुँचाते हैं ॥ १२ ॥

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