Monday 26 May 2014

अब तुम्हारे दरवाजेपर आकर पड़ गया

  हे प्रभु! शरणमें आयेकी लज्जा रखिये| मुझसे कोई धर्म, पवित्रता, शील, ताप, व्रत आदि साधते नहीं बना, तब क्या मुख लेकर आपसे प्रार्थना करूँ | कुछ कहना तो चाहता हूँ; किन्तु मनमें संकोच करके चुप रह जाता हूँ, अपने कर्मोंको देखकर (प्रार्थना करनेमें भी) भय लगता है | मुझे यही एक बल है, येही मेरा आधार है की आपके पतितपावन यशका वेद भी गान करते हैं| जन्मसे लेकर निर्निमेष (निरंतर) येही आशा लगी रही है (इसी आशाके कारण) विषयरूपी विषको खानेमें (विषयसेवनमें) कभी तृप्ति नहीं मानी| जिस मायाको मल एवं वमनके समान सभी संतोंने त्याग दिया है, उसीसे इस मूढ़बुद्धिने प्रेम कर रखा| जहाँतक मेरी स्मरण-शक्ति है (जहाँतक मुझे स्मरण है) जितने भी पाप-मार्ग हैं, उन सबका मैंने अनुसरण किया है, कोई भी (पाप) मुझसे बचा नहीं है| यह सूरदास अवगुणोंसे भरा है; किन्तु हे गोपाल! अब तुम्हारे दरवाजेपर आकर पड़ गया है और तुम्हारी शरण ताक रहा है | (तुम इसे अब शरण में ले लो!)

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