Wednesday 28 May 2014

हम अहँकार के वशीभूत हो, अपने सर्वस्य का, बिनाश कर लेते हैं !!

जिस प्रकार पुल पर हम सब यात्री होते हैं, और कभी स्थाई-निवास (घर) बनाने की नहीं सोचते, उसी प्रकार, जिंदगी में भी हमें, प्रतिपल, यात्री की भावना से ही, जीवन-यापन करना चाहिए !!
भावार्थ --
यदि हम इन महान विचारक की उपरोक्त सीख याद रखें तो, तभी हम जीवन में, त्रिशूलों से बच सकते हैं, परन्तु यदि सीख भूल गए और पुल पर ही, स्थाई निवास बनाने का प्रयत्न करने लगे, तो विवेक-शीलता के अभाव में हमें, इन निम्नलिखित तीन शूलों (त्रिशूल) से, कोई नहीं बचा पायेगा :--
1. प्रथम-शूल : द्वेष !! पुल पर मार्ग अवरुद्ध हो जाने से, अन्य यात्रियों से टकराव (द्वेष) होगा !! अब या तो यात्री हमारा घर उजाड़ देंगे, या हम, उन्हें उठाकर, पुल से बाहर, नदी में फैंक देंगे, जो भी बलवान होगा, वह जीतेगा !!
अर्थात हमें, द्वेष/टकराव (दुश्मनी) के दौर से, गुजरना ही पड़ेगा !! यह जंगल (Might is right) का राज्य है, जहाँ शारीरिक (भौतिक) शक्तिमान ही, राज्य करता है !!
2. द्वितीय-शूल : राग !! सम्भव है पुल पर हमें, हमारी विचारधारा (स्थाई निवास बनाने की इक्छा रखने वाले) के, कुछ अन्य लोग भी मिल जाएँ, जिनके परस्पर सहयोग दोस्ती (राग) से हम सब, मिल-जुलकर शांति-पूर्वक, पुल पर ही अपने-अपने घरों में शांति से रहने लगें, और अन्य यात्रियों के लिए, प्रवेश-निषेध (No-Entry) का, बोर्ड लगा दें !! अर्थात उनके प्रवेश को, पुल के बाहर ही रोक दें !!
परन्तु, यह तूफ़ान के पहले की शांति (Calm before the storm), का राज्य है !! जो विवेक-जनित शांति से, पूर्णतः, बिपरीत (Opposite) है !!
3. तृतीय-शूल : अहंकार !! यह सबसे बड़ा शूल है, जिसमें हम, अपने मानव-जीवन की, महानतम भूल करते हैं !! पुल बनाने वाले को, जिसकी कृपा से हम पुल पर आये, उससे भी, युद्ध करने को, तत्पर हो जाते हैं !! अर्थात, उसके दिशा-निर्देशों (वैदिक-चर्या विज्ञान) का भी, पूर्ण उल्लंघन, करने लगते हैं !!
जो स्वछंदता/उच्छंगलता/अराजकता का अँधकारमय साम्राज्य है !! जिसे, पुल बनाने वाला, नष्ट करता ही है, क्योंकि वह सर्व शक्ति-शाली व्यवस्थापक है  अतः हम अहँकार के वशीभूत हो, अपने सर्वस्य का, बिनाश कर लेते हैं !!

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