Thursday 29 May 2014

जीवन को बोझ बनाकर न जीएं

सुख-दु:ख जीवन नैया की दो पतवार
जब कभी हमारे साथ अनहोनी होती है, हम पहला पत्थर भगवान की ओर उछालते हैं। उन्हें दोष देने लगते हैं। खासतौर पर जब घर में किसी सदस्य की असमय मृत्यु हो जाती है तब हमारे मन में यह सवाल उठता ही है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? चूंकि भगवान तो उत्तर देने आ नहीं सकते इसलिए कई लोगों के सवाल अनुत्तरित ही रह जाते हैं। यह रोष धीरे-धीरे उदासी में और उदासी फिर डिप्रेशन में बदल जाती है।
इसलिए बिना उत्तर प्राप्त किए जीवन को बोझ बनाकर न जीएं। ईश्वर अवतार लेता ही इसलिए है कि वे हमारे ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे सकें। ईश्वर हमारी पहली सांस के साथ ही अंतिम सांस पर भी हस्ताक्षर कर चुका होता है। इस दौरान वह हमें उम्रभर खुशी और गम के पल देता रहता है। इस धरती पर हम सीखने आए हैं। यह उसी का हिस्सा है। जब अच्छा होता है तो हम आभार जताते हैं।
धीरे-धीरे हम हमारा हक मान लेते हैं कि ईश्वर को हमारे साथ अच्छा करना ही होगा। इसलिए जब अनहोनी होती है तो हम बिखर जाते हैं और परमात्मा को कोसने लगते हैं। पर वह ऐसा करके हमें यही याद दिला रहा होता है कि सुख-दुख एक नाव की दो पतवार हैं। एक से नाव चलाओगे तो भंवर बनकर नाव एक जगह घूमेगी और डूबेगी। दो पतवारों से चलने वाली नाव का अपना एक किनारा और यात्रा तय होती है। इसलिए परमात्मा के फैसले में धैर्य के साथ भविष्य में झांके, वो फिर कुछ अच्छा करने के लिए खड़ा है और दिखाई भी देगा।

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