Sunday 25 May 2014

ना जाने किसकी तलाश में
जन्मों से भटकता रहा हूँ मैं
अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक
अपना नाम पढता रहा हूँ मैं
लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल
तू ही लफ़्ज़ों का लिबास पहने
मेरी कलम से उतरी है
यूँ चुपके से ख़ामोशी से
तेरे क़दमो की आहट
हर गुजरते लम्हे में सुनता रहा हूँ मैं
खिलता चाँद हो या फिर
बहकती बसंती हवा
सिर्फ़ तेरे छुअन के एक पल के एहसास
से
ख़ुद ही महकता रहा हूँ मैं
यूँ ही अपने ख़्यालों में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत
पढता रहा हूँ मैं
पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास
करवा दिया ।
की तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में
मुस्कुराती है ।
और तेरे लिए आज भी एक
अजनबी रहा हूँ मै 

No comments:

Post a Comment