Sunday 25 May 2014

छोटी-छोटी बातों में यदि वह आवेश में

 नकारात्मकता का परित्याग:- शायद ही कोर्इ ऐसा साधक आया हो जिसके जीवन में समस्याएँ न आयी हो, जिसने मुसीबतों का सामना न किया हो, जिसका उपहास न उड़ाया जाता हो परन्तु इसके बावजूद भी साधक से यह आशा की जाती है कि वह अपनी सदभावना न छोड़े। साधक धैर्यवान, गम्भीर, व समत्व के भावों से स्वयं के व्यक्तित्व का निर्माण करें। छोटी-छोटी बातों में यदि वह आवेश में आएगा अथवा अपनी साधना की ऊर्जा को खर्च करने लगेगा तो उसकी साधना को negative direction में जाने में देर न लगेगी। स्थिति क्या हो सकती है इसका आंकलन इस छोटी घटना से किया जा सकता है।
एक बार एक दुष्ट व्यक्ति एक उच्च स्तरीय साधक को तंग करता था। साधक स्वयं पर संयम रखने का प्रयास करता रहता था। परन्तु एक बार जब साधक तीन घंटे जप करने के उपरान्त घूमने निकला तो वह दुष्ट व्यक्ति सामने आकर कुछ-कुछ उल्टा सीधा बोलने लगा। साधक का मूड़ किसी कारणवश घर से ही खराब था। आज उसकी सहन सीमा पार हो गयी उसने दुष्ट को श्राप दे दिया ‘जा तुझे राक्षस योनि मिलें’। वह दुष्ट तुरन्त ही राक्षस बन गया। राक्षस बनते ही सर्वप्रथम उसने साधक पर आक्रमण किया व साधक को मार डाला।
यह कहानी एक अंलकारिक चित्रण भी हो सकती है। परन्तु यह एक गहरा मर्म व्यक्ति को दे जाती है। यदि साधक ने अपनी ऊर्जा का Negative प्रयोग किया तो कुछ समय पश्चात् वह उसके लिए विनाशकारी सिद्ध होगी। 
‘सदभावना हम सबमें जगा दो, पावन बना दो हे देव सविता’ साधक यह प्रार्थना करें व मनोभूमि बना रखें कि उसका अन्त:करण सदभावों से सदा पूरित रहें।
परम पिता परमात्मा की इस जगत में सभी सन्तानें हैं कुछ लायक हैं कुछ नालायक हैं यह हमारा प्रारब्ध है कि वो हमें किस प्रकार की संगत प्रदान करते हैं। लेकिन हैं सभी हमारे भार्इ बहिन। जैसे-जैसे हमारे प्रारब्धों का बोझ हल्का होगा हमें बहुत प्रेम करने वाले परिजन मिलने मिलेंगे व हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।
परन्तु एक कठिन पड़ाव हमें ऐसा मिल सकता है जिसमें हम अपने को सहज महसूस न कर पाएँ। आस पास ऐसे व्यक्तियों का संग हो जो हमारे लिए दु:खदायी हो व हमें परेशान करता रहता हो। परन्तु इस पड़ाव को पार करने के उपरान्त एक सुखद आनन्ददायक पड़ाव भी पड़ता है जिसे पाकर साधक निहाल हो जाता है। सावधानी दोनों जगह रखनी है। कष्टदायक परिस्थितियों में हम घृणा, निराशा में न जा फँसे व आनन्ददायक स्थिति में हम भोग विलास में न डूब जाएँ। अपना विवेक वैराग्य व परमात्मा की कृपा दोनों मिलकर हमें सही मार्ग पर चला सकते है।

2. अन्त समय तक सावधानी:- साधक कर्इ बार कुछ विषयों में परंपरागत हो जाता है व अनेक बातों में लापरवाह हो सकता है। परन्तु कर्इ बार नियमों का उल्लंघन उसके लिए घातक भी सिद्ध हो सकता है। जैसे-जैसे व्यक्ति ऊपर उठता है उसके पतन के अवसर भी उतने ही बढ़ जाते है।
शास्त्र व महापुरुष इस विषय में प्रस्तुत करते है- 

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