Wednesday 28 May 2014

कोई शर्त होति नहिँ प्यारमेँ,

कोई जब तुम्हारा हृदय तोडदे,
तड़पता हुआ जब कोई छोडदे ।
तब तुम मेरे पास आना प्रिय,
मेरा दर खुला है खुला हि रहेगा;
तुम्हारे लिए ॥॰॥

अभि तुमको मेरी जरूरत नहिँ,
बहुत चाहनेवाले मिलजाएंगे ।
अभि रूपका एक सागर हो तुम,
कमल जितने चाहोगी खिलजाएंगे ॥

दर्पण तुम्हे जब डराने लगे,
ज़वानी भि दामन छुड़ाने लगे ।
तब तुम मेरे पास आना प्रिय,
मेरा सर झुका है झुका हि रहेगा;
तुम्हारे लिए ॥॰॥

कोई शर्त होति नहिँ प्यारमेँ,
मगर प्यार शर्तोँ पे तुमने किया ।
नज़र मेँ सितारे जो चमके ज़रा,
बुझाने लगी आरतीका दीया ॥

जब अपनी नज़र मेँ हि गिरने लगो,
अंधेरों मेँ अपने हि घिरने लगो ।
तब तुम मेरे पास आना प्रिय,
ये दिपक जला है जला हि रहेगा;
तुम्हारे लिए ॥॰॥

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