Saturday 31 May 2014

तबतक वह इश्वर तक पहुँचने नहीं देती

वासना लोगोके हिरदये में ऐसा ही प्रभाव रखती है जैसा कि वीर्यमें मांस,छिलका,हड्डीया छुपे हुए है ! जितेंद्रिये लोग इच्छाके कारण थक गये है ! (इच्छा ही वासना है !)   थोड़े ही लोग इश्वरीय मार्गमें अंततक पहुचते है !
इच्छाका इतना बड़ा प्रभाव है कि प्राय: महात्माओं सम्मान प्राप्त करनेसे एकदम अलग रखा है ! इच्छाके रूप का क्या वर्णन किया जाय ...?? बाबा ने एक कथा सुनाई थी आपके सन्मुख रख रहा हु, एक संतने बनमें निवास किया ! उसने अपने मनमें ये विचार किया कि किसी से भिक्षा नहीं मांगूगा ! यदि कोई वस्तु अपने आप मिल जाये तो उसको भी अपने हाथसे मुखमें नहीं डालूँगा ! जब कुछ दिन इस प्रतिज्ञा में बीत गये और कुछ खाया नहीं तो इच्छा खूब रोने लगी ! मगर रोनेसे उसे कुछ लाभ नहीं हुआ ! जंगलमें किसी मेवेको या भूख की आग बुझानेवाली किसी वस्तुको उसने नहीं खाया ! जिस बृक्षके नीचे वह संत बेठा हुआ था,उसपर अकस्मात एक कोवा आ बेठा ! रोटी का एक टुकड़ा उसके मुख से नीचे गिरा और संत के सिरपर आ पड़ा ! उसे देखकर मनने इच्छा और उसमे व्याकुलता भी आयी,मगर उस संतने मन को उधर नहीं जाने दिया ! और इन्द्रियोंको उसने कहा की मुझे अलग छोड़ दे ! मैं अपने हाथसे इस रोटीके टुकड़ेको तुझे नहीं दूंगा ! भले तू आकर ले ले ! कहा जाता है कि इश्वरके प्रतापसे अंगूठेके बराबर सफेद चूहे के समान उसके मुँहसे एक प्राणी बाहर आया ! उस रोटी के टुकड़ेमें से थोडा सा खाकर बापस लोटा,जिससे कि उस संतके मुखमे वह प्रवेश करे ! संतने उसे भीतर नहीं जाने दिया ! मुँहको बंदकर लिया और पूछा- तू कोन है..? उसने जवाब दिया कि मैं तेरी इन्द्रियलोलुपता हु जो तुमहें इश्वरसे वंचित रखती है ! फिर पूछा तेरा मालिक कोन है ..?उत्तर दिया -शैतान ! फिर पूछा तेरा निवास कहा है..?? उत्तर दिया परायेपन का अस्तित्व !
संतने कहा, कई दिनोंसे मैंने तुझे भोजन और जल नहीं दिये,तो तू मर क्यों नहीं गयी ..? उत्तर मिला कि जल और भोजनके सिवा और दूसरी चीज़े भी मेरी रोज़ी है -भोज्य वस्तु है जो मेरे जीवन और अस्तित्व का कारण है ! संतने पूछा -वह क्या चीज़े है ..?? उत्तर मिला -उत्तम कर्मका अभिमान ! वह मेरा मुख्य भोजन है ! अपने योग किया और कहा कि अपने हाथसे कोई चीज़ तुझे खाने को नहीं दूंगा ! बस,माई और खुदी (अहम) है जिसने जगत को इश्वरसे अलग कर दिया है ! तेरा अस्तित्व मुझे ज्ञात है वह मच्छरके दानेसे अधिक नहीं ! परन्तु मेरा जीवन तेरे डरके कारण है ! इन्द्रियोंका फरेब,कामेच्छा,गुमराही और भी जितने बुरे काम है वे मेरी रंगे और पुट्ठे है ! इश्वरके लिये इच्छा के सिवा सभी इच्छाए मैं हूँ !        
परन्तु जिसने अपने अहमको नष्ट कर दिया,वह स्वतंत्र हो गया और अपने ध्येय पर पहुँच गया ! मनुष्य अपने अस्तित्वमें उपास्यसे मिल जाता है और उसकी कृपासे उसे प्राप्त कर लेता है,मैंने उसे नष्ट हो जानेके लिये गुरु निश्चित कर दिया ! उस संतने खुदगर्जी हठधर्मीको अपनेमें जाने का मार्ग नहीं दिया और इश्वरसे मिल गया ! सरकार, इच्छा की सूक्ष्मता इतनी अधिक है कि उसका बयान नहीं किया जा सकता ! उसकी पहचान यह है कि जैसे पुष्पमें सुगंध होती है, वह सुगंध अपने आप उठती है और पवनपर सवार हो के चलती है ! जिस स्थानसे वह आती है,आनेके समय उसे उसका ज्ञान नहीं होता ! इसी तरह इच्छाका आना जाना भी किसी पर प्रगट नहीं होता ! जबतक इधर उधर इच्छाओं के लिये स्थान है,तबतक वह इश्वर तक पहुँचने नहीं देती ! क्योकि दुनियामें इन्हीके परिमाणको पुनजन्म कहते है !

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