Friday 30 May 2014

वह सब ब्रह्म रुप हैं

मैं कौन हूँ ? जिस नाम से सगे-संबंधी य मित्र आदि तुमें पुकारते है अथवा जानते हैं, क्या वही तुम्हारा वास्तविक नाम या स्वरुप है अथवा तुम कोई और हो?

मैं कौन हूँ- स्वयं से अन्तर क्रिया में जाकर पूछें? आपके सवालों का जबाब तुम्हें स्वयं मिल जायेगा। परन्तु मैं तुम्हें फिर भी तुम्हारे वास्तविक स्वरुप से परचित कराने क प्रयास करुंगा...

परब्रह्म परमात्मा ॐकार स्वरुप है। जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया हैं (१) अकार (२) उकार (३) मकार, (१) अकार का तत्यप्राय: (ब्रह्मा) (२) उकार का तत्यप्राय: विष्णु (३) मकार का तत्यप्राय: शिव से हैं, जो हमारे शरीर से संबंधित हैं। हमारे शरीर का प्रथम भाग ब्रह्मा (सर से कंठ तक) द्वितीय भाग विष्णु (कंठ से नाभि तक) तृतीय भाग शिव (कमर से निचे तक)

ब्रह्मा का तत्यप्राय: "ब्राह्मण" से है, विष्णु का तत्यप्राय: "वैश्य" से है तथा शिव का तत्यप्राय: "शूद्र" से है। हमारे शरीर के तीनों भागों को ही ब्रह्मा-विष्णु एवं शिव कहा गया है, जो पूर्णतय: सत्य हैं।

तुम स्वयं पूर्ण ब्रह्म हों, ब्रह्म की कोइ जाति अथवा सम्प्रदाय नही होता है फ़िर तुम जातिवाद या सम्प्रदायवाद के झगड़े में क्यों फंसे हुए हों।

पूर्ण ब्रह्म का कार्य तो सभी को प्यार-स्नेह करना हैं। हम सब परब्रह्म भगवन सूर्यदेव की संतान हैं। सूर्यदेव अपनी किसी भी सांतन के साथ भेद-भाव नहीं करते है। कौन किस जाती या सम्प्रदाय का है, इस बात पर वह कभी भी ध्यान नहीं देते है, वह तो सभी को अपनी संतान मान कर प्रेम करतें है, फिर तुम एक दूसरे के साथ भेदभाव या घृणा क्यों करते हों।

अपने से बड़ों कि सेवा और अपने से छोटों को प्यार करोगेँ, तो तुम्हेँ सुख: मिलेगा। जातिवाद या सम्प्रदायवाद में प्यार, सुख: और शांति नहीं है और न ही कभी भी मिलने वाली ही हैं।

स्वार्थी तथा अज्ञानी तत्त्वों द्वारा फैलाया गया सब मायाजाल हैं, इससे बचेँ और स्वयं को जानें।

संसार जितने भी जीव-पशु-पंछी-वृक्ष आदि हैं, सभी परमात्मा स्वरुप हैं। परमात्मा ने सभी को एक दूसरें की सेवा के लिये बनाया हैं।

तुम स्वयं "ब्रह्म" हो और चराचर जगत में जो भी तुम्हारी आखेँ देख रही है वह सब ब्रह्म रुप हैं। सभी से निष्काम प्रेम करें। इसी में तुम्हारा मंगल और कल्याण होगा।

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