Tuesday 27 May 2014

जीवन मे ज्ञान का सूर्य उदय हुआ

कोई भी कार्य एकाग्र चित्त होकर किया जाए तो उसमें सफलता मिलने मे ज्यादा वक्त नही लगता है ॥हरी ॐ ॥ 
संत एकनाथ देवगड राज्य के दीवान श्री जनार्दन स्वामी के शिष्य थे 10 वर्ष की उम्र मे ही उन्होंने श्रीगुरुचरणों मे अपना जीवन समर्पित कर दिया था वे गुरुदेव के कपड़े धोते पूजा के लिए फूल लाते गुरुदेव भोजन करते तो वह पंखा झलते गुरु के पुत्रों की देखभाल करते उनके नाम आये हुए पत्र पढ़ते और गुरु के संकेत अनुसार उनका जवाब देते ऐसे एवं अन्य भी कई प्रकार के छोटे मोटे कार्य वे गुरुचरणों मे करते एक बार उन्हें गुरुदेव ने राजदबार का हिसाब करने को कहाँ एकनाथ बहियाँ लेकर करने बैठे दूसरे ही दिन प्रातः हिसाब किताब राजदरबार मे बताना था सारा दिन हिसाब किताब लिखने और देखने मे बीत गया रात हुई तो नौकर दीपक जलाकर चला गया एकनाथ को पता नही चला कि रात हो गई है हिसाब मे एक पाई की भूल आ रही थी आधी रात बीत गई फिर भी भूल पकड़ मे नही आ रही थी एकनाथ अपने काम मे लगे रहे प्रातः जल्दी उठकर गुरु ने देखा कि एकनाथ तो अभी भी हिसाब देख रहे है वे आकर दीपक के आगे चुपचाप आकर खड़े हो गए इससे बहियों पर अँधेरा छा गया फिर भी एकनाथ एकाग्र चित्त मे हिसाब देखते रहे वे अपने काम मे इतने मशगूल थे कि अँधेरे में भी उन्हें अक्षर साफ दिख रहे थे थोड़ी देर बाद उन्हें एक पाई की भूल पकड़ मे आ गई एकनाथ हर्ष से चिल्ला उठे मिल गई मिल गई उनकी आवाज सुनकर गुरुदेव बोले क्या मिला बेटा एकनाथ चौंक पड़े ऊपर देखा तो सामने गुरुदेव सामने खड़े थे उठकर प्रणाम किया और बोले गुरुदेव एक पाई की भूल पकड़ मे नही आ रही थी अब वह मिल गई हजारों का हिसाब और एक पाई की भूल और उसको पकड़ने के लिए रातभर जागरण गुरु की सेवा मे इतनी लगन इतनी तितिक्ष और भक्ति देखकर दीवान जनार्दन स्वामी के ह्रदय में गुरुकृपा उछाल मारने लगी उन्हें ज्ञानमृत की वर्षा करने के लिये योग्य अधिकारी का उरआँगन हृदय मिल गया सद्गुरु की आध्यात्मिक बसीयत संभालनेवाला सतृशिष्य मिल गया उसके बाद एकनाथ के जीवन मे ज्ञान का सूर्य उदय हुआ और उनके सान्निध्य मे अनेक दूसरे साधको ने अपनी आत्मज्योति जगाकर धन्यता का अनुभव किया साक्षात गोदावरी माता भी लोगों द्वारा डाले गये पाप धोने के लिए इन ब्रह्मनिष्ठ संत के सत्संग मे आती थी संत एकनाथ की एकनाथी भागवत को सुनकर आज भी कई लोग तृप्त होते है 

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